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ये क्या कम है !

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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यदि आप नहीं होते तो…(शिक्षक दिवस विशेष)….

यदि आप नहीं होते तो आदर-सम्मान की परिभाषा कहाँ से सीख पाते एवं ज्ञानार्जन में वृद्धि भी नहीं हो पाती। जो सीखा गया है, उसका पालन करना चाहिए। बच्चों ने अपने शिक्षक का आदर-सम्मान भी करना चाहिए। ज्ञान में ही आदर-सम्मान जुड़ा होता है, जिसे हम सभी शिक्षण के दौरान प्राप्त करते हैं। नैतिक शिक्षा अपने-आपमें बहुत महत्व रखती है। कुछ गलती हो तो लोग-बाग ताना मार ही देते हैं-‘क्या यही सिखाया था !’
शिक्षक के लिए हर बच्चा कोहिनूर ही होता है। शिक्षक के अलावा अपने से बड़ों का सम्मान करना भी सीखना चाहिए। यही ज्ञान जीवनपर्यन्त तक बेहतर जीवन के लिए मूलमंत्र सिद्ध होगा। वर्तमान में बड़ों का मान सम्मान करना तो कई बच्चे भूलते जा रहे हैं। वे इलेक्ट्रानिक दुनिया के सम्मोहन में बंधे से जा चुके हैं। विद्यालयीन जीवन की अनगिनत यादों को आज जब याद करते हैं तो बचपन की यादों में खो कर मुस्कान चेहरे पर आ जाती है। शिक्षक अपने ज्ञान और अनुभव को सभी विद्यार्थियों में बांटते और दी गई शिक्षा को हम सभी ध्यान पूर्वक पढ़ते और समझते थे। शिक्षक जब कक्षा में आते तो सब खड़े होकर उनका अभिवादन करते। जब परिवार के साथ बाजार में जाते और रास्ते में शिक्षक मिल जाए तो पापा-मम्मी के संग शिक्षक को नमस्कार करते ,यही आदर -सम्मान की भावना शिक्षक से हमने शालेय जीवन में सीखी थी जो आज हमारे दिल में बड़े होने एवं बड़े पद पर विद्यमान होने पर सजीव है।
मुझे चुनाव का वाकया याद आता है, जब मुझे पीठासीन अधिकारी पद और मेरे शिक्षक जिन्होंने मुझे पढ़ाया था उन्हें मेरे अधीन मतदान अधिकारी नंबर १ पर नियुक्त किया गया। चुनाव में और भी अधिकारी मेरी चुनाव संबंधी सहायता हेतु मेरे साथ थे। चुनाव सामग्री पद के हिसाब से संभालने का दायित्व था। हम सभी अपनी-अपनी सभी सामग्री लेकर बस की और चलने लगे। मैंने देखा कि ये तो अपने शिक्षक हैं, जिन्होंने बचपन में मुझे पढ़ाया था। वे अब बुजुर्ग हो चुके थे और उनसे उनकी सभी सामग्री और स्वयं का भारी बेग भी उठाए नहीं जा रहा था। मैंने शिक्षक जी से कहा-“सर ये सब आप मुझे दीजिए, मैं लेकर चलता हूँ।”
शिक्षक जी ने कहा-“आप तो हमारे अधिकारी हैं। आपसे कैसे उठवा सकता हूँ ?”
मैंने कहा-“आपने तो हमें शिक्षा के साथ सिखाया था ‘आदर सम्मान का पाठ’, आपकी शिक्षा की बदौलत ही आज बड़े पद पर नौकरी कर रहा हूँ, ये क्या कम है ?”
मैंने, मेरे शिक्षक जी की चुनावी सामग्री और बैग उठा लिए। शिक्षक जी की आँखों में आँसू छलक पड़े और मन में साहस का हौंसला भर गया। यही शिक्षक सेवा से प्राप्त ज्ञान अच्छे कार्य हेतु सदैव जीवन भर प्रेरणा के स्त्रोत और आधार स्तंभ रहेंगे।

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL

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