डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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रामरस की अपार महिमा…
एक गृहिणी के हाथ में न केवल बच्चों के पालने की डोर होती है, बल्कि इसके अलावा उस पर घर के लिए स्वस्थ और पौष्टिक भोजन तैयार करने की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। अगर वह इस बात को ध्यान में रखे तो अतिरिक्त नमक के सेवन को काफी हद तक रोका जा सकता है। जब नमक की मात्रा जरा-जरा सी कम होने लगे, तो परिवार के सदस्य पहले तो झुँझलाएंगे, लेकिन फिर उस स्वाद की आदत हो जाने पर आप ही आप कम नमक वाले खाने को चाव से खाने लगेंगे। ‘थाली की बायीं ओर’ के अधिक नमक वाले व्यंजन भी कम से कम खाने चाहिए। किसी भी हालत में नमक पूरी तरह छोड़ने के बारे में कभी भूलकर भी न सोचें। इसके बुरे परिणाम भी होते हैं, क्योंकि शरीर में स्थित कोशिकाओं की कार्य-प्रणाली में नमक का कार्य महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए संत मंडली नमक को ‘रामरस’ कहती है। यह कितना सुंदर विचार है! इस नामकरण का संदेश यह है कि, जिस प्रकार रामरस के बिना भोजन रसहीन है, उसी प्रकार रामनाम के बिना जीवन भी रसहीन है।
निर्जलीकरण (डिहायड्रेशन) के उपचार में ओ.आर.एस. बहुत उपयोगी है, लेकिन यदि यह आसानी से उपलब्ध न हो तो, विश्व स्वास्थ्य संगठन एक सरल सूत्र प्रदान करता है। ३/४ (चाय का) चम्मच घरेलू नमक, १ चम्मच बेकिंग सोडा, १ संतरे का रस (न हो तो उसी प्रजाति का अन्य फल), इन सभी को १ लीटर (उबालकर ठंडा किया हुआ) पानी में मिलाकर प्रभावित व्यक्ति को दें। नारियल पानी, जो प्राकृतिक रूप से हमें लवण और अम्ल प्रदान करता है, वास्तव में अमृततुल्य ऊर्जावान द्रव है। बचपन में हम गर्मी की छुट्टियों में नागपुर में बड़े सवेरे हमारे घर से लगभग डेढ़ मील दूर स्थित प्राकृतिक सुंदरता से भरे अंबाझरी झील के किनारे बगीचे में टहलने जाते थे। वापस लौटते समय हमें सड़क के किनारे मटकों में रखी बहुत ही सस्ती ठंडी ‘नीरा’ बेचने वाले लोग मिलते थे। हम जैसे अनेक थके-हारे लोगों के लिए उस ठंडी ठंडी नीरा को पीने का परम आनंद ही कुछ और था। (हालाँकि ‘नीर’ और ‘नीरा’ शब्दों में थोड़ा अंतर है, लेकिन उनके घटक अलग-अलग है।) मित्रों, ध्यान रहे कि इस ‘नीरा’ का प्राशन सूर्योदय के पहले करना अत्यावश्यक है, अन्यथा यहीं नीरा सूरज की रोशनी से ‘ताड़ी’ में परिवर्तित हो जाती है। यह सुनिश्चित है कि, जब स्वास्थवर्धक सामग्री की बात आती है, तो यह ‘बहुगुणी नीरा’ नारियल पानी से बेहतर है।
इसी ‘नीरा’ के बारे में एक गौरवपूर्ण जानकारी देती हूँ। हमारे देश की पहली महिला जैव रसायन वैज्ञानिक डॉ. कमलाबाई सोहोनी (१८ जून १९११-२८ जून १९९८) भारत की पहली विद्यावाचस्पति (पीएचडी) पदवीधारी वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने १९३७ में मुंबई से एम.एससी और १९३९ में इंग्लैंड की प्रसिद्ध कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरी की। उन्होंने हमारे देश की कई खाद्य सामग्रियों पर व्यापक शोध के साथ ‘एक बेहतरीन पेय नीरा’ की उपयोगी सामग्री और मनुष्यों पर उनके प्रभाव’ पर भी गहरा अध्ययन किया। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सुझाव पर डॉ. कमला ने ‘नीरा’ (ताड़ी की विभिन्न प्रजातियों के फूलों से निकाला गया रस) पर काम शुरू किया। इस पेय में विटामिन ए, सी और लोह तत्व काफी मात्रा में था। बाद में शोध के इसी क्षेत्र में एक व्यापक अध्ययन में उन्होंने पाया, कि आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषित किशोरों और गर्भवती महिलाओं के आहार में सस्ते पूरक के रूप में नीरा शामिल करने से उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ। इसी कारण उन्हें सर्वश्रेष्ठ शोध के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। कभी-कभी मुझे इस ‘नीरा’ की याद आती है, परन्तु आजकल उसके आसानी से दर्शन नहीं होते।
मैंने पिछले साल की डायरी से पिछले संकल्पों के पन्नों को पार करते हुए नए वर्ष के लिए ऊर्जावान संकल्प लिखना शुरू कर दिया है, और आपने ?