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राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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जन्म दिवस (२ अक्टूबर) विशेष…

लाल बहादुर शास्त्री हिन्दुस्तान के स्वर्णिम इतिहास में…एक ऐसा नाम…एक ऐसा किरदार…एक ऐसा व्यक्तित्व और एक ऐसा राजनेता थे,जिन्हें आज किसी पद,प्रतिष्ठा से नहीं,बल्कि सादगी,ईमानदारी व निर्णय क्षमता के आधार स्तम्भ के रूप में जाना जाता है। शास्त्री जी २१वीं सदी की युवा पीढ़ी के दिलों पर आज भी एक सफल व्यक्तित्व और श्रेष्ठ राष्ट्रवादी किरदार के रूप में राज कर रहे हैं। वर्तमान में भी हिन्दुस्तान की राजनीति में कोई भी ऐसा राजनेता और राष्ट्रवादी किरदार दिखाई नहीं देता,जो शास्त्री जी के चरित्र के इर्द-गिर्द दिखाई देने की क्षमता रखता हो,क्योंकि शास्त्री जी ने त्याग ,समर्पण और सादगी का जो उदाहरण एक आज़ाद राष्ट्र के राजनेता रूप में भारतवासियों के सामने रखा,वो आज भी अतुलनीय है।
जब शास्त्री ने प्रधानसेवक के रूप में देश के दूसरे प्रधानमंत्री का पद संभाला,तो एक नवीन राष्ट्र के रूप में दायित्व का कुशलतापूर्वक पालन करना चुनौतीपूर्ण था,लेकिन चुनौतियों का सहज भाव से सामना करना शास्त्री जी के खून व स्वभाव में था और शायद इसलिए ही मात्र १६ साल की उम्र में ही देश की आज़ादी के लिए अपने परिवार के विरुद्ध जाकर,आज़ादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों का हिस्सा बन,देश की स्वतंत्रता में अपनी शिक्षा की आहुति दे दी।
शास्त्री जी के व्यक्तित्व और निर्णय क्षमता की असली अग्नि परीक्षा तब हुई,जब पाकिस्तान ने १९६५ में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। वो शास्त्री जी के उच्च मनोबल का कमाल ही था, जिसने भारतवासियों के लिए ‘एक समय अन्न का त्याग’ करने का आग्रह करना पसंद तो किया,पर युद्ध भूमि से एक कदम भी पीछे हटना स्वीकार नहीं किया। परिणाम स्वरूप पाकिस्तान,हमारी
मातृभूमि के चरणों में नतमस्तक होने पर मजबूर हो गया,साथ ही इस युद्ध ने १९६२ में चीन से मिली करारी हार के बाद,भारतीय सेना के मनोबल को एक बार फिर ऊंचाइयों पर पहुँचाने का कार्य भी किया
अफसोस कि इस शानदार व्यक्तित्व को १९६६ में
‘ताशकंद समझौते’ के दौरान रहस्यमय तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया,जिसका रहस्य आज भी हमारे सामने बना हुआ है।
अगर हम आज प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल का तुलनात्मक अध्ययन करें,तो ये स्पष्ट होता है कि अपने अल्पकाल में प्रधानमंत्री के तौर पर जो राष्ट्रहित के निर्णय शास्त्री जी ने लिए,वो आज भी एक आम हिन्दुस्तानी को स्वाभिमान का अहसास कराते हैं। ऐसे महान और अमर व्यक्तित्व शास्त्री जी को उनके जन्मदिवस पर शत-शत नमन।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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