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वे भी क्या दिन थे…

प्रत्यूषा जैन
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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वे दिन भी क्या दिन थे,
जब हम स्कूल जाते थे
साथ पढ़ते-साथ खेलते,
साथ में खाना खाते थे।

याद आते अब वह दिन,
जो स्कूल में बिताए
दोस्तों के संग खूब खेले,
और झूमे,नाचे गाए।

पहले तो हम स्कूल को,
बोझ समझते थे
पर अब पता चला,
वह स्कूल नहीं,घर था।

अब दिल में फिर से,
एक उम्मीद जागी है
जो बंजर जमीन थी,
फिर से अब भीगी है।

अब फिर से हमारे,
स्कूल खुल जाएंगे
दोस्तों और शिक्षकों संग,
हम सभी पढ़ पाएंगे।

इस एक ही खुशखबरी ने,
दिल खुश कर दिया।
जैसे अंधेरे में जला हो,
उम्मीद का एक दीया॥

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