पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
************************************
यदि सच में खुशी चाहते हैं तो अपने रिश्तों को सहेजें। हम सभी अपने पूरे जीवन खुश रहना चाहते हैं और खुश रहने के लिए ही पैसा कमा कर सुख-सुविधा और ऐशो-आराम की चीजें इकट्ठी करते रहते हैं, लेकिन क्या खुशी को केवल पैसों से आप खरीद सकते हैं…? नहीं न…! पहले अधिकतर लोग संयुक्त परिवारों में रहा करते थे। कम सुविधाओं में भी प्रसन्न रहते थे। इसका कारण जिम्मेदारियों का बोझ बँटा हुआ रहता था… मिल-बाँट कर काम करते थे और मिलकर परिवार वालों के साथ खाते-पीते और रहते थे…… एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होते थे एवं दूसरे के दु:ख- तकलीफ को दिल से महसूस करते थे…। अपने परिवारवालों, सभी सगे-संबंधियों और यहाँ तक कि पड़ोसियों के साथ भी खूब निभती थी…। कहा जाए तो चाची, मौसी, जीजी जैसे रिश्तों से आजीवन बँध जाते थे।
आजकल मानसिक अवसाद और आत्महत्या की घटनाएं आम होती जा रही हैं। इसका मुख्य कारण लोगों का एकाकीपन है। एक घटना देखिए कि संयुक्त परिवार में रहने वाली मेघना साधारण परिवार से थी, उसकी शादी सम्पन्न परिवार के इकलौते चिराग अखिल से हो गई। अखिल की परिवार की जायदाद के बँटवारे को लेकर माँ-पापा, सभी रिश्तेदारों से अनबन थी। अखिल के पिता ने नकली दस्तखत बना कर पूरी जायदाद पर कब्जा कर लिया था। सम्पन्नता उनके कदम चूम रही थी, परन्तु मेघना को यह अच्छा नहीं लगता था, लेकिन उन लोगों के आगे वह बोल नहीं पाती थी। अखिल भी हर बात में बुराई ढूंढ लेता और उसे किसी से भी मिलने-जुलने से रोकता। सारी सम्पन्नता के बावजूद वह खुश नहीं रहती और माय़के के सारे रिश्तेदारों की हँसी-मजाक, पिकनिक तो कभी पार्टी बहुत याद आती। कभी अंताक्षरी, तो कभी कार्ड्स की बाजी सारी रात चलती और सब खूब मजा करके खुश होते, लेकिन यहाँ रह कर वह उदास हो उठती थी।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के हैप्पीनेस प्रोफेसर डैनियल गिल्बर्ट के अनुसार “जब हम परिवार के साथ होते हैं तो हम खुश होते हैं और यदि दोस्त साथ में होते हैं तो और ज्यादा खुश होते हैं और यदि गंभीरता पूर्वक सोचें तो जिन चीजों से हमे खुशी मिलती है, वह सब हमें अपने परिवार या दोस्तों के माध्यम से ही मिला करती है।
किसी भी हँसते-मुस्कुराते व्यक्ति को देखकर आप यह नहीं कह सकते कि उसके जीवन में सब कुछ अच्छा या खुशगवार ही है… क्योंकि सुख और दुःख तो हर व्यक्ति के जीवन में आता-जाता रहता ही है, परंतु जो हँसोड़ या हँसमुख व्यक्ति होता है, वह खुशी के पलों को अपनी मुट्ठी में सहेज कर रखना जानता है।”
रिश्तों की अहमियत को हम कुछ इस तरह से समझ सकते हैं, कि अगर आपको कोई तोहफे में नाजुक और बेशकीमती चीज देता है, तो आप उस उपहार को बहुत संभाल कर रखते हैं, ताकि वह कहीं टूट-फूट न जाए तो फिर समझ लीजिए कि सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों के उपहार को सहेज कर रखने की जिम्मेदारी तो बनती ही है।
बदलते परिवेश में रिश्तों की परिभाषा जरूर बदली है, परंतु रिश्तों की अहमियत आज भी पहले जितनी ही है। रिश्तों को सदाबहार बनाये रखने के लिए आवश्यक है, कि हर रिश्ते को समुचित आदर दिया जाए। हर रिश्ते की नींव आदर के जल से सिक्त होकर ही सुदृढ़ बनती है। विचारों में मतभेद संभव है, परंतु रिश्तों से खुशी चाहिए तो रिश्तों में एक-दूसरे के लिए सम्मान और प्रेम आवश्यक है।
आजकल पैसे, जमीन और जायदाद को लेकर भाई-भाई के बीच अनबन होकर रिश्ते तोड़ लेना सामान्य-सी बात होती है, लेकिन क्या बचपन के वह प्यारे पल कोई कभी भूल पाता है! वह अपने अहम् के कारण बाहर दूसरों के पास खुशियाँ को तलाशता है, लेकिन सच तो यह है कि अपनों के सान्निध्य में जो खुशी मिलती है वह दूसरों के पास कहाँ…! याद करिए-जब गाँव के सभी मामा- मौसी होते थे और उनसे कितना लाड़-दुलार मिलता था। आज भी कोई पुराना रिश्तेदार आपको देख कर कितना खुश होता है और अपने व्यवहार से आपको खुशी महसूस करवाता है।
एक दूसरी घटना देखिए कि विकास के पापा नहीं रहे तो वह अपने पुराने मकान को बेचने के इरादे से आया, लेकिन वहाँ पर ताई-ताऊ के अपनत्व और लाड़- प्यार से भरे व्यवहार को देख कर हर वर्ष कुछ दिनों के लिए छुट्टियों में आने का मन बना कर और अपने साथ खुशी भरे पल की मधुर यादों की पोटली लेकर लौट गया।
हर व्यक्ति की खुशी उसकी रुचि पर निर्भर करती है। किसी को पुस्तक पढ़ने से खुशी मिलती है तो किसी को रेस्टोरेंट का बढ़िया खाना खाने से तो किसी को चिड़ियों को दाना डाल कर चुगते हुए देख कर, तो किसी व्यक्ति को मंदिर में दर्शन करके मन को खुशी मिलती है। किसी को साफ-सफाई करके बहुत खुशी महसूस होती है……
निष्कर्ष यह है, कि खुशी कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे हम बाजार से खरीद सकें। खुशी का संबंध मन को संतोष पहुँचाने वाली भावनाओं से होता है। जो भावनाएं मन को कचोटती हैं, दुखी करती हैं, वह कभी खुशियों से जुड़ी नहीं हो सकतीं।
प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉर्ज वैलेट कहते हैं, कि वर्षों के अध्ययन से यह पाया है कि हमारे जीवन को सबसे अधिक जो प्रभावित करता है, वह है हमारे दूसरों के साथ रहने वाले संबंध। इसलिए जीवन में रिश्ते बहुत मायने रखते हैं और हमारी खुशियों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं…। यह भी देखा जा रहा है कि भौतिक समृद्धि या बाहरी धन-दौलत ने हमें अंदर से खोखला करने का काम किया है। इंसान की पैसे की भूख कभी समाप्त नहीं होती, वरन् दिनों-दिन बढ़ती जाती है और पैसा बटोरने में ही वह अपनी सारी ज़िंदगी खपा देता है।फिर अशक्त होने पर यह महसूस करता है कि पैसा सुख दे सकता है, लेकिन खुशियाँ नहीं…। जैसे ए.सी. की ठंडी हवा सुख दे सकती है, परंतु जब आप किसी जरूरत मंद को पेटभर खाना खिलाते हैं या उसे पंखा खरीद कर देते हैं तो उसके चेहरे की मुस्कान आपको खुशी प्रदान करती है।
इसलिए पैसा कमाने के साथ-साथ अपने सामाजिक दायरे को भी समृद्ध करते रहना चाहिए, क्योंकि समाज के लोगों के साथ बैठ कर ही आपको खुशियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
जब हम अपने जीवन में खुशी के कारणों एवं उत्तरदायी कारकों पर विचार करते हैं, तो इनमें परिवार एक अहम् कारक है। हमारी खुशियों और गम को नियंत्रित करने, उनमें साथ निभाने में अग्रणी परिवार ही होता है। सभी सदस्यों के साथ बैठ कर खाना खाने, घूमने जाने में प्यार और आनंद की अनुभूति ही खुशियों को जन्म देती है।
जब हम सभी अपने मित्रों के साथ बातें करके समय बिताते हैं तो निश्चय ही वास्तविक दुनिया से दूर एक अन्य वातावरण में अपने मन- मस्तिष्क को ले जाते हैं। कभी प्यार तो कभी पैसे के बहाने ही खुशी के छोटे-बड़े अवसर जीवन में खुशियाँ भर देते हैं। मूलरूप से खुशी व्यक्ति के अंदर निहित भाव है, जिसे बाहर के साधनों से पाने या खोजने की बात फिजूल-सी है।
हमारे समाज में त्यौहार और पारिवारिक उत्सव रिश्तों को निभाते रहने के विचार की ही संकल्पना है। आज भी जब परिवार के किसी उत्सव में शामिल होते हैं, तो सबसे मिल-जुल कर कितने तरोताजा महसूस करते हैं। किसी पर्व या त्यौहार में जब पूरा परिवार इकट्ठा होकर साथ में मनाता है, तो खुशी दुगुनी हो जाती है और खुशी की अनुभूति से मन भीग उठता है। इसलिए हमारी खुशियाँ रिश्तों को निभाने में ही है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जीवन में आप प्रसन्नचित्त रहना चाहते हैं, तो अपने जीवन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करें और दूसरों की परवाह न करते हुए अपने अंतर्मन के कहे अनुसार करें। किसी दूसरे की प्रतिक्रिया के बारे में सोच कर डर के मारे अपने सपने को पूरा न करने की दिशा में प्रयास ही नहीं करने से आखिर में हमें दु:ख ही अनुभव होगा। इसलिए अपने सुविचारित कदम हमें जीवन में सुख के साथ खुशी भी देते हैं।
निर्जीव हुए रिश्तों में जान फूंकने का सबसे अच्छा तरीका है अपनों के साथ समय बिताना। जो लोग आपके लिए मायने रखते हैं, उनके साथ बेहतर समय बिताना बहुत असरदार होता है। यदि समय का अभाव है तो समय निकालें, चाहे थोड़ा हो पर यह एहसास करना कि उनके साथ समय बिताना आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है, जरूरी है। समय निकालें और साथ में समय बिता कर दूसरों को भी खुशी दें और स्वयं भी पाएँ।
अपने सब्र का दामन कभी न छोड़ें, रिश्तों में गलतफहमियाँ हो जाती हैं, लेकिन शिकायतों को धैर्य के साथ सुनें। नहीं तो उन्हें यह एहसास होगा कि आपको उनकी परवाह नहीं है। हो सकता है कि उनकी शिकायत आपकी नजर में वाजिब न हो, पर यह शिकायत हो सकता है आपके किसी व्यवहार से आई हो, इसलिए उस बात को अपनी बात कह कर या माफी माँग कर रिश्ते को निभाएं, क्योंकि आपसी मौन रिश्तों में दूरी ला देता है और आप अपनों से दूर रह कर कभी खुश नहीं रह सकते हैं।
अक्सर लोग अपनी खुशी विलासिता पूर्ण जीवन में खोजते हैं और दूसरों की सम्पन्नता देख कर सोचते रहते हैं कि उनके पास ये नहीं है… वो नहीं है, और दुःखी रहते हैं। हम सबको अतीत की अप्रिय यादों को भुला कर सुकून के साथ अपने वर्तमान में जीने की कोशिश करनी चाहिए। हम लोगों को नन्हें-मुन्नों को देख कर प्रेरणा लेनी चाहिए कि थोड़ी देर रोने के बाद नाराज बच्चा अपने उसी दोस्त के साथ खुशी-खुशी खेलने लग जाता है, तो बड़े होकर हम लोगों को क्या हो जाता है कि खुशी के अवसर भी दूसरों की सम्पन्नता और अपनी कमियों की चिंता में बरबाद कर लेते हैं।
रिश्ते सुधारने के लिए-दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा आप उनसे चाहते हैं। आपके द्वारा की गई छोटी-सी प्रशंसा से आप उस व्यक्ति की निकटता पा सकते हैं। कोशिश करें कि आप दूसरे की मनः स्थिति को समझते हुए उसकी भावनाओं का आदर करें।
रिश्तों में खुशी पाने के लिए कई बार अपने अहम् को छोड़ कर झुक जाने से गुरेज न करें। जो लोग अहम् के कारण झुकना नहीं जानते, वह रिश्तों में प्रेम और आत्मीयता की अनुभूति से सदा वंचित रहते हैं। अपने बुजुर्गों का मान-सम्मान करें, उनकी बातों को ध्यान से सुनें, चाहे करें मन की।
बिगड़े रिश्तों को संवारने की पहल स्वयं करें, क्योंकि हर रिश्ता अपने में महत्वपूर्ण होता है। सबसे आवश्यक बात है कि दूसरों के प्रति नफरत और नकारात्मक विचार मन से बिल्कुल ही निकाल दें। जब रिश्ते में प्यार और आदर होता है तो रिश्ते निभा कर खुशी मिलती है। अपनी जुबान पर हमेशा मिठास बनाकर रखिए।रिश्तों में निंदा से बचें। यदि कुछ पसंद नहीं आ रहा तो दूसरों से कहने से क्या फायदा। उसी शख्स से दिल खोल कर बात करें। संभव है कि उसे अपनी गलती समझ आ जाए। रिश्तों की सबसे खराब स्थिति है-आपस में बातचीत का बंद हो जाना।
ध्यान रहे कि पैसा कभी भी किसी को खुश नहीं कर सकता। पैसे या धन से केवल सम्पन्नता प्राप्त कर सकते हैं, समाज में अपने ऐश्वर्य का ढिंढोरा पीट सकते हैं, लेकिन जो आत्मिक प्रसन्नता या खुशी है वह अपनों के साथ मिल-बैठ कर ही मिल सकती है। खुशी एक अनमोल और अमूल्य संपत्ति के अलावा कुछ भी नहीं है, इसे महसूस किया जा सकता है। यह निश्चित रूप से आपके द्वारा उपलब्ध अन्य सभी चीजों से ज्यादा मूल्यवान है।
आजकल रिश्तों की बुनियाद ही पैसों के इर्द-गिर्द घूम कर दम तोड़ रही है। यदि रिश्तों में खुशी चाहिए तो हर रिश्ते के प्रति आदर, प्यार और सम्मान रखें तथा उन रिश्तों के साथ समय बिता कर मिलने वाली खुशी को सहेजें।