राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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बात मेरी ये समझ न आई,
क्या-क्या खेल खिलाती है
मानव रोटी को खाता या,
रोटी मानव को खाती है!!
ये तो सबको नाच नचाती,
तरह-तरह के खेल दिखाती
अच्छे-बुरे कर्म करवाती,
जाने क्या-क्या रास रचाती।
ईमान-धर्म की बात कहाँ!
रिश्तों को भूल ये जाती है
मानव रोटी को खाता या,
रोटी मानव को खाती है!!
रोटी ने अपना देश छुड़ाया,
देश छोड़ परदेश बुलाया
दिल मेरा ये कहता रहता,
सपनों की खातिर तू आया।
कैसी ठगनी है यह रोटी!
अपनों से दूर भागती है
मानव रोटी को खाता या,
रोटी मानव को खाती है!!
सारा जगत ही दौड़ रहा,
रोटी के पीछे घूम रहा
कहीं रूठ न जाए रोटी,
कितना जतन लगा रहा।
राजा हो या रंक हो,
सबको खूब लुभाती है
मानव रोटी को खाता या,
रोटी मानव को खाती है!!
रोटी की खातिर युद्ध हुए,
बदल लिए लोगों ने धर्म
अपने अपनों को बेच रहे,
कोई लिहाज न कोई शर्म।
कहीं व्यंजन फेंके जाते हैं,
बच्ची भूखी सो जाती है।
मानव रोटी को खाता या,
रोटी मानव को खाती है!!
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।