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धूल रिश्तों पर जमी

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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लोभ लालच के गणित में धूल रिश्तों पर जमी है।
आँसूओं में है दिखावा आँख में सूखी नमी है।

आप गर कश्ती थे मुझको पार होना चाहिए था,
आपके व्यवहार में तो दिखती रूखी गमी है।

आप तो अखबार से वादे चुनावी हो गये हो,
देख कर हरकत अनोखी साँस दुखियों की थमी है।

आप मानो या न मानो पर मुझे विश्वास पक्का,
विश्व पूरा देख आया एक जैसा आदमी है।

साधनों में साधना गुम धर्म गुम आडंबरों में,
साधुओं पर कार महँगी ज्ञान की लेकिन कमी है।

जिंदगी कब तक थकायेगी नहीं मालूम मुझको,
मौत भी जिंदादिली की जीत में लगता रमी है।

सभ्यता दरियाब से तालाब होती जा रही है,
हाल गर ये ही रहा तो सूखना फिर लाज़मी है।

गीत-ग़ज़लें और दोहे छंद भी लिखने लगा हूँ,
शब्द का भंडार है टकसाल ‘हलधर’ दमदमी है॥

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