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लगता है प्यारा

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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लगता है वो मुझको प्यारा,
नीली आँखें दिखता न्यारा…
दूर रहे वो जैसे दिल्ली…
का सखि साजन ? ना सखि बिल्ली।

रसीला मीठा-मीठा,
होंठ न लगता रहता रूठा
मन ललचाना उसका काम,
का सखि साजन ? नहीं सखि आम।

वह सागर मैं बहती रहती,
डूबी उसमें मोती चुनती
प्रेम भरा दिखाता वह पंथ,
का सखि साजन ? ना सखि ग्रंथ।

शीतल चितवन लगता बाँका,
तरुवर ओट छिपा वह झांका
गले लपेटा नीला फंदा,
का सखि साजन ? ना सखि चन्दा।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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