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लज्जा हीन

स्मृति श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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‘हैलो! रजनी सब तैयारी हो गई ना ? कितना पैसा इकट्ठा हुआ है ? उसे एक लिफाफे में रख लेना,खुले पैसे देना अच्छा नहीं लगेगा।’
रजनी ने जैसे ही फोन उठाया उसे सामने से केदार भाई साहब की आवाज सुनाई दी।
रजनी- ‘जी भाई साहब,आप चिंता ना करें। सब तैयारी हो गई है ५०,००० रुपया इकठ्ठा हुआ है, जिसे मैंने लिफाफे में रख लिया है।’
‘अच्छा ठीक है,फिर हम १२ बजे मिलते हैं।’ के साथ ही फोन कट गया। फोन कटते ही रजनी ने घड़ी देखी ‘ओह माय गॉड! ९ बज चुके हैं,१२ बजे तो निकलना है…’ बड़बड़ाती हुई रजनी जल्दी-जल्दी काम खत्म करने लगी।
रजनी को हड़बड़ाते देख उसके पति शेखर ने पूछा-‘क्या हो गया,इतनी हड़बड़ी में क्यों हो ?
‘अरे आपको बताया था न,कि व्यास परिवार के यहां जाना है आज।’
‘कौन व्यास परिवार ?और क्यों जा रहे हो व्यास परिवार के यहां?’ शेखर ने फिर सवाल दागा।
‘हे ईश्वर!’ रजनी ने थोड़ा खीजते हुए जवाब दिया, ‘अरे है एक व्यास परिवार,जो तलैया में रहता है। व्यास जी की ‘कोरोना’ से मृत्यु हो गई है,और आज उनकी तेरहवीं है।
पिछले एक साल से ‘तालाबन्दी’ के कारण घर में रहने से जमा पूंजी खत्म हो गई और जो बची,वह उनके इलाज में खर्च हो गई। उसके बाद भी व्यास जी बच जाते तो भी ठीक होता,लेकिन कोरोना ने उनकी जान ले ली और उनके बाद उनके परिवार को आर्थिक समस्या खड़ी हो गई। एक तो मिसेज व्यास गृहिणी है,और बच्चे भी छोटे हैं,सो घर कैसे चले यही समस्या है। बेचारे बड़ी मुसीबत में हैं,तो हम सबने सोचा कुछ पैसा इकठ्ठा करके मिसेज व्यास को दे दें तो थोड़ा सहारा हो जाएगा और व्यास जी के परिवार को सम्हलने का मौका मिल जाएगा। और इसीलिए हम सब आज व्यास जी के यहां जा रहे हैं।’ कहते हुए रजनी बाथरूम में घुस गई।
तय समय पर सब लोग इकट्ठा हुए और व्यास जी के घर पहुंच गए। एक छोटे से कमरे में व्यास जी की फोटो रखी थी,और वहीं उनकी पत्नी और कुछ रिश्तेदार पुरुष एवं महिलाएं बैठे थे। रजनी और उसके साथी मिसेज व्यास के पास जाकर बैठ गए ।
रजनी ने मिसेज व्यास के पास जाकर कान में कुछ फुसफुसाया और धीरे से एक लिफाफा उनकी तरफ बढ़ाया। वे लिफाफे को लेने ही वाली थी कि,किसी रिश्तेदार की नजर उस पर पड़ गई और उन्हें ने खोद-खोद कर सारी जानकारी ले ली। फिर जो प्रपंच मचाना शुरू किया तो पूछो मत! ‘हाय राम! कैसी निर्लज्ज औरत है,हमारे बेटे को गए अभी चंद दिन ही हुए हैं और इसने तो भीख मांगनी ही शुरू कर दी। ‘
वहां बैठे सज्जन कहाँ से चुप रहते,बोले, ‘कितना समझाया था लल्ला को,कुछ बचत भी किया करो। मुसीबत में काम आएगा,पर आजकल कोई किसी की सुनता ही कहां है।’ ‘हाय-हाय भाभी,भैया ने सारी जिंदगी कुछ भी नहीं कमाया क्या ? जो यह नौबत आ गई। कुछ तो शर्म करो भाभी।’ ऐसी बातों का सिलसिला जो शुरू हुआ,तो थम ही नहीं रहा था। मिसेज व्यास ने जो हाथ पैसे लेने के लिए आगे बढ़ाए थे,उन्हें चुपचाप पीछे खींच लिया,और रजनी चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई। कुछ देर बैठने के बाद जैसे ही रजनी और उसके साथी निकलने लगे,मिसेज व्यास का बेटा हड़बड़ाया हुआ आया और बोला, -‘मम्मी-मम्मी पैसे दे दो,पंडित जी को दक्षिणा देनी है,और हलवाई और टेंट वाले भैया भी पैसे मांग रहे हैं।’

साड़ी के पल्लू में से कुछ मुड़े-तुड़े नोट निकाल कर बेटे के हाथ में रखते हुए मिसेज व्यास ने बेटे से कहा,-‘इससे पंडितों की दक्षिणा दे दो और हलवाई और टेंट वाले को बोलो,थोड़ा-थोड़ा करके बाद में चुका देंगे।’ यह सुनकर रजनी ने एक नजर वहां उपस्थित सभी महानुभावों पर डाली,तो देखा सभी लज्जावान बगलें झांक रहे थे।

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