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लताजी को शब्द श्रद्धांजलि

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि…

थी सर्वप्रिया मृदुभाषिणी,
स्वर की वह सुरसरी विभूति
माँ सरस्वती की वरदपुत्री,
लता थीं धरती पर देवदुती…।

कोकिल कंठी स्वर मृलांगनी,
छायी भारत कोकिला तूती
जिव्हा बसती सुमधुर सरगम,
लताजी की नहीं कोई युति…।

सुरीली मल्लिका-ए-तरन्नुम,
इतिहास रची स्वयं प्रस्तुति
गा कर पचास हजार गाने,
अभिमान परे रही अछूती…।

गीतों की रानी प्रयाण की,
प्रति मुख स्तब्ध आँसू पुती
स्वर देवी के साथ चली वो,
संगीत यति दी मधुर आहुति…।

रिक्त हुआ संगीत सिंहासन,
छोड़ चली भारती सपूती
प्रति दिल में छायी वीरानी,
कौन भरेगा शून्य अनुभूति…।

नियति खेल है आना-जाना,
जीवनभर लड़ अपनी बूते
भवसिंधु यह डूबते-तरते,
ब्यानवे उमर उबरी भवभूति…।

प्रेम,विरह या पीर प्रतीक्षा,
जन्म-मृत्यु,सुख-दुःख या मस्ती
ग़ज़ल,भजन-दर्शन,कव्वाली,
सर माथे गीतों की भभूति…।

शिक्षा शाला,मंदिर महफ़िल,
होटल ठेला,मेला,विद्युति।
लता जी बन सुर धारा बहे,
हो श्मशान या गृह प्रसूति…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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