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वह मान गई

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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जुगनू बाज़ार से लौटते हुए आँगन से आवाज लगता है,-“क्यों री सरला ? आज नींद नहीं आ रही है क्या ? और दिन तो ७ बजे ही बिजली बुझा देती है। आज क्या हुआ है ?” जुगनू आज बाजार से देर से लौटा था।
“नहीं-नहीं काका;ऐसा कुछ नहीं है! आज बन्नो दीदी आई है ना ! इसलिए…।” सरला ने प्यार से अंदर से कहा।
“अच्छा-अच्छा! तो सोचूं कि, आज सूरज पछिम से तो…?” जुगनू बाहर से ठहाका लगाते हुए बोला।
“ठीक ही हुआ यह भाई। कल देवकी भी आने वाली है। इसी बहाने दोनों की बात हो जाएगी।अच्छा सुबह मिलता हूँ बन्नो बिटिया। चलता हूँ।” जुगनू जाते हुए बोला।
“ठीक है काका।” बन्नो ने प्रत्युत्तर दिया।
दूसरे दिन सुबह-सुबह जुगनू के घर से जोर-जोर से रोने की आवाजें आई। सारे गाँव में हड़कम्प मच गया। सरला और बन्नो भी दौड़ी- दौड़ी वहाँ पहुँची।
“क्या हुआ जुगनू काका ? काकी क्यों रो रही है ?” सरला ने आँसू पोंछते हुए कहीं जाने को तैयार जुगनू से पूछा।
“होना क्या है बेटा ? तेरे काका- काकी की किस्मत फूटी और क्या ?” जुगनू अपने माथे पर हाथ पटकते हुए हताश होते हुए से बोला।
“ऐसा क्या हुआ है काका ? ठीक- ठीक क्यों नहीं बताते ?” बन्नो ने आश्चर्य से पूछा।
“क्या बताना बेटा ? देवकी…!” अपना माथा बार-बार पीटते हुए जुगनू रोता हुआ बोला।
उधर, जुगनू की बिलखती पत्नी को संभालती हुई महिलाओं ने सारा हाल बताया। देवकी शहर के कालेज हॉस्टल से रात को बस में घर आ रही थी। उसकी बस का सुबह के समय एक्सिडेंट हुआ और वह वहीं ढेर हो गई। सुबह-सुबह जुगनू को प्रधान जी ने बताया। उन्हें फोन आया था। शव पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया है। जुगनू भी वहीं जा रहा है।
जुगनू, सरला के सिर पर हाथ फेरता हुआ गाड़ी में चला गया। देवकी उनकी इकलौती बेटी थी।वह बन्नो की दोस्त थी। बन्नो की शादी हाल ही में पास के एक कस्बे में हुई थी। उसने देवकी को भी घर जंवाई बनने को तैयार एक लड़का ढूंढ रखा था। उसी बात के सिलसिले में वह आज अपने मायके आई थी। शायद देवकी को उसी ने फोन पर बुलाया था, पर जुगनू और उसकी बीवी को अभी यह पता नहीं था। यह खबर सुन कर सब का रो-रो के बुरा हाल था।
घटना के कई दिनों बाद एक दिन जुगनू सरला से झुकी नजर से बोला,-“बेटा एक बात बोलूँ ? बुरा तो नहीं मानेगी ?” जुगनू और उसकी पत्नी का सरला से बचपन से ही विशेष प्यार था। उनका उसकी उम्र का बेटा किसी बीमारी से २ साल पहले जीवन से हाथ धो बैठा था। तब से तो वे और भी लगाव रखते थे, क्योंकि वे घर पर दोनों अकेले जो होते थे। सो हरिया को उसे कई बार अपने यहाँ भेजने को कहते रहते थे। हरिया के २ बेटियाँ और १ बेटा था। हरिया कहता,-“भाई इसे ही पूछो। मेरा कोई इनकार नहीं है”, पर उनकी पूछने की हिम्मत ही नहीं होती थी।
“नहीं काका! बोलिए! बुरा क्यों मानूँ ?” सरला बोली।
“बेटा.. मैं चाहता हूँ कि, तू कुछ दिन… हमारे यहाँ…!” जुगनू रुक- रुक कर बोलता हुआ अधूरी बात कह कर चुप हो गया।
“मैं समझ गई काका। मैं कल से आपके यहाँ रहने आ जाऊंगी।आज मम्मा-पापा से पूछ लूंगी।” सरला जुगनू की धंसी हुई पोपलों को चूमती हुई-सी बोली। यह सुन कर जुगनू की दोनों बाँछें खिल आई। सरला के हाथ पकड़ते हुए बोला,-“भगवान तेरा भला करे बेटा। तेरे आने से तेरी काकी का दु:ख हल्का हो जाएगा।”
जुगनू अपने घर लौट गया। घर पहुँचते ही बीबी से कुछ खुशी से बोला,-“सुनो भागवान ! वह मान गई।”

दोनों पति-पत्नी की आँखों में खुशी के आँसू थे और एक-दूसरे को कुछ यूँ देख रहे थे, मानो आज उन्हें कोई अपार खजाना हाथ लगा हो।