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वास्तव में अत्यंत निंदनीय

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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मुद्दा-ऑक्सीजन की कमी

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि,महाभारत काल बहुत विकसित रहा। कारण संजय ने अपने राजा को युद्ध की सब घटनाएं नित्य प्रति सुनाई और राजा को लग रहा था कि में स्वयं मैदान में रहकर साक्षात् युद्ध देख रहा हूँ। इसके अलावा धृतराष्ट्र को पूरे राज्य के घटनाक्रम की जानकारी रहती थी,यहाँ तक कि अपने दुष्ट सुपुत्रों की करामातों को जानता था। समझ में आ रहा है कि उस समय का तंत्र आज के तंत्र से सशक्त था,जबकि हम २१वीं शताब्दी में जी रहे हैं,पर अब इसमें संदेह और शंका होने लगी है।
आज विश्व एक गाँव जैसा छोटा हो चुका,कोई भी जानकारी किसी से छुप नहीं सकती। आज गुप्तचरी नई-नई तकनीकी के कारण बहुत सुगम और सटीक हो गई है। लादेन भी आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर वर्षों सुरक्षित रहा,पर आजकल के नए राजा महाराजा,मंत्री,सचिव अधिक आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर मुसीबत में पड़ रहे हैं। जैसे गुप्तचरी काण्ड,जो सरकार की पहुँच के बाहर मानकर चल रहे हैं,जो पूर्णतः असंभव है।
पिछले दिनों संसद में वहां के मंत्री ने कहा कि दूसरी लहर में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की कोई कमी नहीं रही और न कोई मौत हुई। इससे बड़ा अंधापन नहीं देखा जा सकता है।मानकर चलें कि राज्य शासन द्वारा जानकारी न देने के कारण यह बात कही गई है। क्या करें,सरकार लकीर की फ़कीर होती है। आश्चर्य इस बात का कि पूरे भारतवर्ष में प्राणवायु की कमी की खबरें इतनी उछली और मीडिया के साथ आम लोगों में बहुत कोफ़्त था। राज्य सरकारों ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और प्रधानमंत्री से गुहार लगाकर बंदोबस्त करने की अपील की थी, पर वे सब बातें धृतराष्ट्र तक किसी संजय ने नहीं पहुंचाई होंगी,पर उनकी आँख बंद होने के बाद कान जरूर खुले रहें होंगे।
इतना बड़ा झूठ कैसे पचा लेते हैं ? लाखों व्यक्तियों की कोरोना काल में बीमारी,हजारों की मौत और हजारों प्राणवायु,दवाओं और अव्यवस्था के कारण मौत के मुँह में समा गए। श्मशान थर-थर कांपे और सरकारों को कुछ नहीं पता! इतने बेगाफ़िल! मजेदार बात कि इस बात से प्रधानमंत्री इंकार नहीं कर पा रहे हैं,यानी मिली-जुली सरकार।
क्या प्रधानमंत्री या संबधित मंत्री ने इतना भी साहस नहीं जुटाया कि,विभाग इस जानकारी की पुष्टि कर ले। केन्द्र सरकार अपनी छवि साफ-पाक रखना चाहती है,इस पर एक महोदय जो अपने को बहुत योग्य मानते हैं,का कहना है कि यह कहना कठिन है कि,प्राणवायु की कमी से मौत हुई होगी।
निजी और सरकारी चिकित्सा संस्थानों ने कोरोना के कारण मौतें नहीं बताई,जब सरकार और न्यायालय ने कहा कि कोरोना मृतकों को राहत मिलेगी तो दरवाजा या खिड़की खुल गई।
इतना गैर ज़िम्मेदार बयान वास्तव में अत्यंत निंदनीय है,और यह सरकार की नाकामयाबी दर्शाती है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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