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विश्वभाषा की ओर हिन्दी अग्रसर

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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अमरावती में जन्मे गुणाकर मुले ने ‘भारतीय लिपियों की कहानी’ लिखी। उसमें उन्होंने लिखा कि, जिस लिपि में यह पुस्तक छपी है, उसे नागरी या देवनागरी लिपि कहते हैं जो लगभग २५० वर्ष पहले बनी। इसका विकास होने से अक्षरों में स्थिरता आ गई।
देवनागरी लिपि में मुख्यतः गुजराती, नेपाली, मराठी, संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी भाषाएँ लिखी जाती हैं। अर्थात हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ, संस्कृत एवं नेपाली आदि इसी लिपि में लिखी जाती हैं।
चूंकि, हिन्दी भारतीय संस्कृति की आत्मा है इसलिए ही राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने सन् १९१७ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सबसे पहले हिंदी को राष्‍ट्रभाषा के रूप में मान्‍यता प्रदान करने की बात सबके समक्ष रख दी थी। हिन्दी को राष्‍ट्रभाषा के रूप में मान्‍यता देने के पक्ष में अपने देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु के अलावा शिक्षाविद पुरुषोत्तम दास टंडन, व्यौहार राजेन्द्र सिंह, सेठ गोविन्द दास मालपानी जैसे अनेक लोग भी थे। इन्हीं सबके चलते संविधान सभा ने एकमत से १४ सितंबर १९४९ को इसे राजभाषा का दर्जा देने पर सहमति जताई थी । तत्पश्चात १९५० में हिन्दी को देवनागरी लिपि के रूप में राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ, लेकिन गोविन्द दास मालपानी इस सबके बावजूद हिन्दी भाषा के लिए अपना संघर्ष अनवरत चला रहे थे। वे एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने हिन्दी भाषा के लिए १९६१ में मिला पद्मभूषण सम्मान तक न केवल लौटाया, बल्कि हिन्दी के विकास के लिए सदन में ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसे हिन्दी के विकास के लिए आज भी मील का पत्थर माना जाता है।
अब, चूंकि हिन्दी हमारे देश की राजभाषा है इसी कारण से आजकल प्रशासनिक कार्यों और सरकारी कामकाज के अलावा भी सभी क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग धड़ल्ले से होने लग गया है, जिसका बहुत हद तक श्रेय वर्तमान दृढ़निश्चयी प्रधानमंत्री को है, क्योंकि जैसा सर्वविदित है, नरेन्द्र मोदी हिन्दी में वार्तालाप ही नहीं करते, बल्कि सम्बोधन में भी हिन्दी भाषा को प्रमुखता देते हैं। उसी के फलस्वरूप विदेश में न केवल हिन्दी की पैठ बढ़ रही है, बल्कि आजकल विदेशी शासनाध्यक्ष हो या अन्य उच्च पदाधिकारी भारतीयों के बीच हिन्दी में ही नमस्कार से सम्बोधन शुरू करते हैंं और उन सभी को कुछ हिन्दी वाक्यों के माध्यम से सन्देश देने की चेष्टा रहती है। इन्हीं कारणों से यही मानना है कि, आजकल देश में हिन्दी के प्रति लोगों के रुझान में जिस तरह से परिवर्तन देखने में आ रहा है, वह निश्चित रूप से स्वागत योग्य है, साथ ही यह स्थिति हिन्दी प्रेमी लोगों को निश्चितरूप से संतोष प्रदान करती है।
यह सुस्थापित है कि, आज के इस बदले समय में राष्ट्रीय एकता में हिन्दी न केवल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, बल्कि विश्व के अनेक भागों में रहने वालों भारतीयों के साथ-साथ विश्वस्तरीय नेताओं के भारतीय नेताओं के बीच व्यवहार में भी महती कड़ी बनी है।

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