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वीरों की वीर निराली

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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थी वीरों की वीर निराली,वह रानी मतवाली थी।
जिसका साहस,शौर्य प्रखर था,संग भवानी-काली थी॥
उस झाँसी की सेनानी की,सारे ही जय बोलो।
बंद पड़े जो इतिहासों में,उन पन्नों को खोलो॥

वीर बुँदेलों की माटी ने,बलिदानों को पोसा।
बैरी का सिर काट दिया,यदि किंचित उसने कोसा॥
बुन्देलों की थाती ने तो,जय का घोष निभाया।
दुश्मन को चटवाई मिट्टी,जय-परचम फहराया॥

मोरोपंत की सुता छबीली,थी साहस-अवतार।
पुण्य धरा गंगा-तट जन्मी,शौर्य भरी तलवार॥
थी बचपन से शान की वाहक,गौरव की संरक्षक।
नाना की थी परम सहेली,रिपु को विषधर तक्षक॥

झाँसी का कुल जब अकुलाकर,गोरों से थर्राया।
हर कुनबे ने उसके आगे,था निज माथ झुकाया॥
गंगाधर की मौत हुई पर,मणि ने धैर्य दिखाया।
लाज बचाने पुण्य धरा की,निज हक़ को जतलाया॥

झाँसी का था कर्ज़ चुकाया,बनी वीर सेनानी।
मातु भवानी के आशीषों,से वह रोशन बलिदानी॥
थर्रा उठे फिरंगी भय से,हर गोरा घबराया।
घोड़े पर पर जब बैठ समर में,मनु ने बल दिखलाया॥

आज़ादी के महासमर की,ज्वाला बहुत प्रबल थी।
दो सखियाँ और चोखी सेना,रानी का सम्बल थी॥
नहीं झुका रानी का सिर वह,बनी महा रणचंडी।
झाँसी का तो शौर्य देख,ह्रूरोज तो हुआ शिखंडी॥

‘मैं झाँसी ना दूँगी अपनी’,स्वर चहुँदिशि गूँजा था।
तब हर नर-नारी ने जी भरकर,रानी को पूजा था॥
रानी झाँसी में साहस था,स्व-अभिमान जगा था।
छोटी सेना,ताप प्रखर पर,सब कुछ प्रबल लगा था॥

घोड़े ने भी अतुल पराक्रम,उस क्षण दिखलाया था।
पर वह निज कर्तव्य निभाकर,स्वर्गलोक धाया था॥
किंचित भी तब मणीकर्णिका,पलभर ना घबराई।
व्यापक सेना थी दुश्मन की,पर वह गति से धाई॥

नगर ग्वालियर कहता देखो,ऐसा वीर न दूजा।
जिसको हमने हर युग में ही,श्रद्धा से है पूजा॥
शौर्य,तेज और बलिदानों की,जो है जीवित गाथा।
आदर से मस्तक झुक जाता,जब भी विवरण आता॥

बुन्देले सैनिक सब चोखे,थे भारत की गरिमा।
बुंदेली माटी कहती है,उसकी स्वर्णिम महिमा॥
बुन्देलों की शान का परिचय,रानी से मिलता है।
ऐसा वीर बहादुर योद्धा,हर दिल में रहता है॥

घोड़ा कूदा उच्च किले से,रानी को ले धाया।
नगर काल्पी मील पार सौ,रानी को पहुँचाया॥
अंग्रेज़ी इतिहास के पन्ने,रानी का यश कहते।
गीतों,कविताओं में गौरव,सबके जज़्बे बहते॥

सच में,कालजयी रानी थी,दिव्य तेज की स्वामी।
त्याग,शौर्य लेकर गाथाओं,में हैं जो अभिरामी॥
सुख,वैभव का त्याग करो,पर आन कभी नहिं तजना।
जिसने की गौरवगाथा के,नए मूल्य की सृजना॥

उस रानी झाँसी की क़ुर्बानी,का मैं वंदन करता।
मातृ-वंदना जो उसने की,श्रद्धा से मन भरता॥

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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