कुल पृष्ठ दर्शन : 80

You are currently viewing वीर संग्रामी मुर्मू

वीर संग्रामी मुर्मू

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
********************************

अमर शहीद वीर तिलका माँझी जयंती (११ फरवरी) विशेष…

पवित्र गंगा सुल्तानगंज संथाली माटी के न्यारे,
महाबली धनुर्धर संथाल परगना की आँखों के तारे
११ फरवरी १७५० को अवतरित हुए तिलका माँझी प्यारे,
छा गई खुशियाँ सारे गाँव और गलियारे।

‘जबरा पहाड़िया’ नाम से जन-जन उन्हें पुकारे,
स्वभाव गुस्सैल, आँखें लाल, वक्ता बन ललकारें
जनता-जनार्दन वीर तिलका माँझी के लगाते जयकारे,
आज़ादी की पहली क्रांति बढ़ी तिलका (मुर्मू) जी के सहारे।

क्रोध, घृणा, पीड़ा, विक्षोभ, तड़प पर विद्रोह किए संथाली,
वीर संग्रामी तिलका, पराक्रमी योद्धा अंग्रेज को देते गाली
युवा जोश, उन्मुक्त उमंग, आज़ाद दीवाना, कृत्य बड़े बवाली,
खेत-खलिहान, जमीन लुटा अंग्रेजों ने की दलाली।

आदिवासी-वनवासी तंग थे, थी अंग्रेजों की चाल मवाली,
खून-पसीने से सिंचित भूमि अनाज पर ऋण वसूली भारी-भरकमवाली
भूखंड कब्जा करते रहे महाजन व व्यापारी अंग्रेजों के आदेशवाली,
अत्याचार, आतंक, लूट-खसोट से बढ़ी तबाही, तिलका सेना हुई मतवाली।

ऐसी चली थी जमींदारी, गरीबों को ऋण देकर लिखाते जमीनें सारी,
अंग्रेजों को सलामी महाजन कर आदिवासी खेती छीनते बारी-बारी
भागलपुर ब्रिटिश मुख्यालय पर संथालों ने की बड़े हमले की तैयारी,
तिलका के जहरीले तीर-धनुष की मार कलक्टर क्लीवलैंड पर भारी।

१७७० में तिलका ने खींचा अपना तीर-कमान,
जगाया गाँव-गाँव, कहा नहीं दूँगा कोई लगान
संघर्ष-हल्ला बोल कर लूटे भागलपुर कोषागार-मैदान,
सारे खजाने जन-जन को बांटे तिलका ने, भाग चले अंग्रेज हैवान।

सुखाड़ से हुई बदहाली, भूखी जन-जन की थाली,
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने टैक्स वसूला देकर भद्दी गाली
गद्दार जमींदार-महाजन के कारण आदिवासी की हुई कंगाली,
गाँव-गाँव सब एक हुए, एकत्रित हुए उस काल के बिहारी-बंगाली।

तिलका माँझी युद्ध करते पहुँचे रामगढ़ सैन्य छावनी,
तीर-धनुष से लैस थी सेना, कब्जा कर लिया ब्रिटिश छावनी।
संथाल परगना-छोटा नागपुर तक फैली तिलका की अमर कहानी,
क्रांति की मशाल थे क्रांति वीर तिलका माँझी, अद्भुत स्वतंत्रता सेनानी॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। सम्मान-पुरस्कार में आपको महात्मा बुद्ध  सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान मिले हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”