बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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हो हरित वसुन्धरा….
सुनो रानी!
आओ सुनाऊं एक कहानी
प्यास लगी जब मानव को,
धरा ने नदिया दे दी
भूख लगी तो,
शाक,फलों की बगिया दे दी।
जो आहार पका के खाया,
ढेरों सूखी टहनियां दे दी
मन मुरझाया जब-जब,
भांति-भांति की महकती
कलियाँ दे दी।
धूप ने जब भी सताया,
छांह संग ठंडी बयरिया दे दी
रोग हुआ मानव को,
ढेरों औषधियाँ दे दी।
वो माँ है न,
सदा उपकार करती रही।
और एक तू संतान जो,
सदा तिरस्कार करती रही॥