संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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शब्दों को अधरों पर रखा
मनमुग्ध, चित्त शांत रखा,
धरी मुस्कान एक मीठी-सी
ले हाथों में उसके हाथ को रखा।
शब्द स्वर कहीं गुम थे मेरे
जब चेहरे को सामने रखा,
भाव भंगिमा भटक रही जो
उनको मन में बांध कर रखा।
अधर शून्य, मन गूंज रहा था
ठहरे शब्दों को ढूंढ रहा था,
वो नयनों की भाषा में उत्सुक
पर, मैं नयनों को मूंद रहा था।
ढ़ाई आखर के चक्कर में
अपराध बोध के गट्ठर थे,
प्रेम, इश्क, प्यार सभी को
संकोचित मन में बांध कर रखा।
पर, तार जुड़े थे दिल से दिल के,
सहमी श्वाँसें कह गई सब-कुछ।
घुल गए शब्द वो अधरों में सारे,
जिन्हें कंपित अधरों में बांध कर रखा॥