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शर्म के कलंक को धोना होगा

ललित गर्ग

दिल्ली
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‘अन्तर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस’ (१७ अक्टूबर) विशेष…

‘अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस’ हर साल १७ अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन पेरिस के ट्रोकाडेरो में १ लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए थे। इसको मनाने का मकसद अत्यधिक गरीबी, हिंसा, और भूख से पीड़ित लोगों को सम्मानित जीवन उपलब्ध कराना है। यह दिन गरीबी को कम करने के लिए सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत पर ज़ोर देता है। इसका मकसद गरीबों के संघर्षों और उनकी चिंताओं को सुनना, उन्हें गरीबी से बाहर आने में मदद करना और अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर ज़ोर देना है। गरीबी को खत्म करना सिर्फ़ गरीबों की मदद करना नहीं है, बल्कि हर महिला और पुरुष को सम्मान के साथ जीने का मौका देना है। गरीबी किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का हनन है। यह न केवल अभाव, भूख और पीड़ा का जीवन जीने की ओर ले जाती है, बल्कि मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं के आनंद का भी बड़ा अवरोध है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार २०२२ के अंत तक विश्व की ८.४ प्रतिशत जनसंख्या या लगभग ६७० मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे। अनुमान है कि वैश्विक जनसंख्या का लगभग ७ प्रतिशत मतलब लगभग ५७५ मिलियन लोग २०३० तक भी अत्यधिक गरीबी में फंसे रह सकते हैं।
आजादी के अमृत काल में सशक्त भारत एवं विकसित भारत को निर्मित करते हुए गरीबमुक्त भारत के संकल्प को भी आकार देना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार ने वर्ष २०४७ के आजादी के शताब्दी समारोह के लिए जो योजनाएं एवं लक्ष्य तय किए हैं, उनमें गरीबी उन्मूलन के लिए भी व्यापक योजनाएं हैं। गत १० वर्ष एवं श्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में ऐसी गरीब कल्याण योजनाओं को लागू किया गया है, जिससे भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए हैं एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है। वर्ष २००५ से २० तक देश में करीब ४१ करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं। तब भी भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है, जहां गरीबी सर्वाधिक है। वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार भारत में कुल २३ करोड़ गरीब हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए विचारों एवं कल्याणकारी योजनाओं पर विमर्श के साथ गरीबों के लिए आर्थिक स्वावलम्बन-स्वरोजगार की आज देश को सख्त जरूरत है। गरीबों को मुफ्त की रेवड़ियाँ बांटने एवं उनके मत बटोरने की स्वार्थी राजनीतिक मानसिकता से उपरत होकर ही गरीबमुक्त संतुलित समाज संरचना की जा सकती है।
गरीबी पहले भी अभिशाप थी, लेकिन अब संकट और गहराया है। गरीबी केवल भारत की ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक बड़ी समस्या है। जब किसी राष्ट्र के लोगों को रहने को मकान, जीवन निर्वाह के लिए जरूरी भोजन, कपड़े, दवाइयां आदि जैसी चीजों की कमी महसूस होती है, तो वह राष्ट्र गरीब राष्ट्र की श्रेणी में आता है। इससे मुुक्ति के लिए सरकारें व्यापक प्रयत्न करती हैं। हम जिन रास्तों पर चल कर एवं जिन योजनाओं को लागू करते हुए देश में समतामूलक संतुलित समाज निर्माण की आशा करते हैं, वे योजनाएं विषम होने के कारण सभी कुछ अभिनय लगता है, छलावा लगता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोक राज्य, स्वराज्य, सुराज्य, रामराज्य का सुनहरा स्वप्न ऐसी नींव पर कैसे साकार होगा ?, क्योंकि यहाँ तो सारे राजनीतिक दल एवं लोकतंत्र को हांकने वाले अपना-अपना साम्राज्य खड़ा करने में लगे हैं। विश्व की सारी संपदा, सारे संसाधन गरीबी को मिटाने में लगते तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती, किन्तु सत्ता की लालसा एवं विश्व पर साम्राज्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षाओं ने व्यवधान खड़े कर दिए। एक राष्ट्र दूसरे कोे भयभीत रखने में अपनी ऊर्जा खपा रहा है, न कि गरीबी दूर करने में।
आज का भौतिक दिमाग कहता है कि घर के बाहर और घर के अन्दर जो है, बस वही जीवन है, लेकिन राजनीतिक दिमाग मानता है कि जहां भी गरीब है, वही राजनीति के लिए जीवन है, क्योंकि राजनीति को उसी से जीवन ऊर्जा मिलती है। यही कारण है कि इस देश में ७७ साल बाद भी गरीबी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। जितनी गरीबी बढ़ती है, उतनी ही राजनीतिक जमीन मजबूत होती है।
सरकारी योजनाओं की विसंगतियाँ ही है कि गाँवों में जीवन ठहर गया है। बीमार, अशिक्षित, विपन्न मनुष्य मानो अपने को ढो रहा है। कह तो सभी यही रहे हैं-बाकी सब झूठ है, सच केवल रोटी है। यह मनुष्य का घोर अपमान है। रोटी कीमती, जीवन सस्ता। मनुष्य सस्ता, मनुष्यता सस्ती। और इस तरह गरीब को अपमानित किया जा रहा है, यह सबसे बड़ा खतरा है।
गरीबी व्यक्ति को बेहतर जीवन जीने में अक्षम बनाती है। गरीबी के कारण शक्तिहीनता और आजादी की कमी महसूस होती है। गरीबी उस स्थिति की तरह है, जो व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कुछ भी करने में अक्षम बनाती है।
एक आजाद मुल्क में, एक शोषणविहीन समाज में, एक समतावादी दृष्टिकोण में और एक कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था में गरीबी रेखा नहीं होनी चाहिए। यह रेखा उन कर्णधारों के लिए शर्म की रेखा है, जिसको देखकर उन्हें शर्म आनी चाहिए। प्रश्न है कि जो रोटी नहीं दे सके वह सरकार कैसी ? जो अभय नहीं बना सके, वह व्यवस्था कैसी ? जो इज्जत व स्नेह नहीं दे सके, वह समाज कैसा ?

गांधी जी और विनोबा जी ने सबके उदय एवं गरीबी उन्मूलन के लिए ‘सर्वोदय’ की बात की, लेकिन राजनीतिज्ञों ने उसे निज्योदय बना दिया। ‘गरीबी हटाओ’ में गरीब हट गए। स्थिति ने बल्कि नया मोड़ लिया है कि जो गरीबी के नारे को जितना भुना सकते हैं, वे सत्ता प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में कैसे समतामूलक एवं संतुलित समाज का सुनहरा स्वप्न साकार होगा ?