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कश्मीर:यह ऐतिहासिक ईद,भ्रष्ट नेताओं से आजादी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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कश्मीर ने कांग्रेस तथा कई अन्य विपक्षी दलों को बड़ी दुविधा में डाल दिया है। इन दलों के कई प्रमुख नेता (कश्मीर के मामले में) खुलकर सरकार का समर्थन कर रहे हैं,बल्कि कश्मीर के पूर्व महाराजा और सदरे-रियासत डाॅ. कर्णसिंह ने भी अमित शाह के फैसले पर मुहर लगा दी है। मोदी सरकार ने कांग्रेसी सरकारों के अधूरे काम को पूरा किया है। इंदिराजी ने तरह-तरह के प्रावधान करके धारा ३७० को इतना पतला कर दिया था कि यह पता चलाना मुश्किल हो गया था कि वह दूध है या पानी है। आज के कांग्रेसियों को इंदिरा का ताज़ मोदी के सिर पर रखना चाहिए था,लेकिन राहुल,गुलाम नबी और कुछ नए-नए मुल्ला बने कांग्रेसी नेताओं ने कांग्रेस को कब्र में लिटा दिया है। देश के कई प्रांतों के कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि हमारे नेतृत्व को क्या हो गया है ? कश्मीर के सवाल पर डाॅ. सिंह के सामने कांग्रेस की पूरी कार्यसमिति की राय दो कौड़ी के बराबर भी नहीं है। देश में कुछ नेताओं के अलावा किस पार्टी के कार्यकर्ता इस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं ? देश की लगभग सभी सामान्य जनता इस कदम का स्वागत कर रही है। कश्मीर के सवाल पर नरेन्द्र मोदी का पूरा भाषण कल मैंने सुना। लगा कि मोदी में एक राष्ट्र-नेता का सच्चा स्वरुप विकसित हो रहा है। धारा ३७० और ३५-ए के विरुद्ध जितने भी तर्क पिछले माह में सूत्र रुप में दिए थे,मोदी ने विस्तार से उनकी व्याख्या की और ठोस उदाहरण भी दिए। उन्होंने पुरानी आदत के मुताबिक विपक्ष या कश्मीर की जनता पर शब्द-बाण नहीं बरसाए,बल्कि उनके घावों पर मरहम लगाया। भारत-जैसे विशाल और लोकतांत्रिक देश के नेता के लिए यही शोभनीय है। सरकार के इस फैसले से कश्मीर के कुछ ठेकेदार नेताओं का नुकसान जरुर होगा,लेकिन कश्मीर की जनता का फायदा ही फायदा है। उन्हें वे सब अधिकार मिलेंगे,जो प्रत्येक भारतीय नागरिक को मिले हुए हैं। वह शीघ्र ही पूर्ण राज्य भी बनेगा और उसकी कश्मीरियत की भी रक्षा होगी। बस बिचैलियों (नेताओं) की लूट बंद हो जाएगी। आतंकवादियों के हौंसले पस्त होंगे। कश्मीरी नेताओं को अब अखिल भारतीय नेतृत्व के मौके आसानी से मिलेंगे। बेहतर हो कि,वे कश्मीर की जनता को भड़काने की बजाय उसे इस बार की ऐतिहासिक ईद मनाने दें। यह ईद कश्मीर की आजादी की ईद है। इस ईद पर कश्मीर सामंतवाद, संप्रदायवाद,आतंकवाद और भ्रष्ट नेताओं के चंगुल से आजाद हुआ है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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