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शिकायत क्यों ?

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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गुजरते वक्त से हमको भला कोई शिकायत क्यों,
गुजरना काम है उसका करें उसकी खिलाफत क्यों ?

निभाई दुश्मनी ता-उम्र हमसे दोस्ती करके,
कभी मैं सोचता हूँ आज भी उससे सख़ावत क्यों ?

सदा मांँगी दुआएँ रहनुमा बन कर रहा हरदम,
उसी के वास्ते दिल में भरी ऐसी अदावत क्यों ?

बना प्यारा रहा खंज़र छुपाए आस्तीनों में,
न जाने दिल में उसके वास्ते इतनी मुहब्बत क्यों ?

खुदा का नेक बंदा है हमेशा नेकियाँ करता,
हरिक बंदा यहांँ फिर भी करे उसकी खिलाफत क्यों ?

खुदा की बारगाहों में सदाएं दे रहा सबको,
फिर भी हर नज़र में आज भी ऐसी हिक़ारत क्यों ?

सुखनवर कह रहा ग़ज़लें हमेशा दाद के काबिल,
रिवायत हो गई ऐसी नहीं करते हैं इज्ज़त क्यों ?

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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