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होली की गंध..

हेमा श्रीवास्तव ‘हेमाश्री’
प्रयाग(उत्तरप्रदेश)

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एक मादक-सी गंध है होली में,
बैठी हूँ,कुछ रंग लिए टोली में।
मन में है उल्लास तेरी बस याद,
चढ़ी बैठी हूँ साँझ की डोली में।
आचल में सफेदी पहन रखी है,
तेरे रँगों की रँगीनी की ताक में।
भीगे मौसम की ये है नरम धूप,
अभी बसंत-शरद की आस में।
यह शाम और होली की सुबह,
कुछ रँग उतार दिये हैं दीवार में।
बेला-टेसू,रजनीगंधा की गंध,
संभाल कर रखी है,इंतजार में।
चने का झाड़,ज्वार की बाली,
सहेज रखी दालान की ताक में।
कुछ बूँद ओस,कुछ छींटे आँसू,
रंग मिले इसमें अपने अंदाज में।
गालों की तन्हाई गर्दन का छोर,
सबको इंतजार है कल होली में॥

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