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….तो समझ लेना होली है

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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सियासत की शतरंज से बाहर निकलकर,
बादशाह,वजीर और प्यादे
सब एक ही अंदाज में नज़र आए,
तो समझ लेना होली है।

पड़ोसी घूरता है इस बात की शिकायत
जो दिन-रात करती है,
वही पड़ोसन जब चिढ़ाती हुई गुजर जाए
…तो समझ लेना होली है।

सरहदों पर गूंज हो जब बम-गोलों की
और चैन से देश सोया हो,
बंदूकों की गोलियां ले रूप पिचकारी का
…तो समझ लेना होली है।

आतंक और विद्रोह के बादल
लगे छंटने जहान से,
नफरत की दुनिया में मुहब्बत की गूंज हो
…तो समझ लेना होली है।

रंग बदले नज़र आए,ढंग बदले नज़र आए,
रहे बस दोस्ती जग में,दुश्मनी को है बिसराए
प्रेम की गाथा लिखी जब जाए,
…तो समझ लेना होली है।

जगत राधा लगे सारा,कृष्णमय जो रहा अब तक,
बजे जब वंशी के स्वर तो,बहे बस प्रेम रस धारा
हरि भी देख जग रूप विस्मित हो,
…तो समझ लेना होली है॥

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