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आखिर,आ ही गया लोकपाल

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आखिर लोकपाल की नियुक्ति हो ही गई। इस आंदोलन की शुरुआत अब से लगभग पचास साल पहले सांसद डाॅ.लक्ष्मीमल्ल सिंघवी और डाॅ.सुभाष काश्यप ने की थी और फिर यही आंदोलन दस साल पहले अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे ने चलाया था। जरा गौर करें कि इस आंदोलन को चलानेवाले लोग कभी सत्तारुढ़ नेता नहीं रहे। वे मूलतः समाज सुधारक रहे हैं। सत्ता की राजनीति में उलझे हुए नेता भला लोकपाल की स्थापना क्यों होने देते। आज के जमाने में भ्रष्टाचार किए बिना कोई प्रधानमंत्री तो क्या, पार्षद भी नहीं बन सकता। नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी पांच साल तक लोकपाल की नियुक्ति को उसी तरह झुलाए रखा,जैसे अन्य दलों की सरकारें झुलाती रहीं। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपना डंडा चलाया तो उसे झक मारकर लोकपाल नियुक्त करना पड़ा। इस नियुक्ति में भी कांग्रेस ने असहयोग किया। उसके नेता इसलिए चयन समिति की बैठक में नहीं गए कि उन्हें ‘विशेष आमांत्रित’ के तौर पर बुलाया गया था, क्योंकि कांग्रेस को लोकसभा में ‘विपक्ष’ की मान्यता नहीं है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि देश के इस प्रथम लोकपाल को भी राजनीति में घसीटा जाएगा। कहा जाएगा कि यह भाजपा का लोकपाल है। जो भी हो, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज पी.सी. घोष से देश आशा करेगा कि वे अपना काम पूरी निष्पक्षता और निडरता से करेंगे। आठ सदस्यीय लोकपाल मंडल नियुक्त हो जाने पर उसे अपने काम से यह सिद्ध करना होगा कि प्रधानमंत्री से लेकर निचले सरकारी अधिकारी तक के भ्रष्टाचार की वह कलई खोलने में कोई लिहाजदारी नहीं करेगा। वह सीबीआई की तरह पिंजरे का तोता सिद्ध नहीं होगा। उसे सर्वोच्च न्यायालय और केन्द्रीय सतर्कता आयोग से भी ज्यादा सख्त होना होगा। मोदी सरकार को बधाई कि उसके हाथों यह महान संस्था कायम हुई। स्वीडन में ‘ओम्बड्समेन’ के नाम से यह संस्था पिछले ३०० साल से काम कर रही है। इसने स्वीडन और नार्वे के अलावा कई यूरोपीय राष्ट्रों में सार्थक काम करके दिखाया है। आशा की जाए कि भारत का लोकपाल हमारे पड़ौसी देशों के लिए भी आदर्श और प्रेरणा का काम करेगा।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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