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श्री जगन्नाथ महिमा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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रथयात्रा पावन नमन, जगन्नाथ श्रीधाम।
नैन युगल कंजल कमल, दर्शन कोटि प्रणाम॥

बहन सुभद्रा चारुतम, संग दाऊ बलराम।
तिहूँ सुशोभित पृथक रथ, जगन्नाथ अभिराम॥

द्वारकेश हृदयस्थली, पुरी चारु श्रीधाम।
विद्यमान परमात्मा, भक्ति प्रीति अविराम॥

उमड़ा जन सैलाब है, दर्शनार्थ भगवान।
कमलनयन राधारमण, शेषासन अरमान॥

दर्शन जगन्नाथ प्रभो, शरणागत हम आज।
कृपासिंधु लक्ष्मीधरे, हर ले कष्ट समाज॥

सकल कामना पूर्ण कर, मानवता कल्याण।
लोभ मोह दहशत दमन, माधव कर जग त्राण॥

मातु सुभद्रा भगिन्या, अग्रज प्रभु बलराम।
शोभित जगन्नाथ हरे, पुण्य पुरी अभिराम॥

शरणागतवत्सल प्रभो, विष्णु रूप जगदीश।
मोक्ष द्वार जीवन जगत, जगन्नाथ लक्ष्मीश॥

लीलाधर षोडश कला, बालरूप राधेश।
योगेश्वर नायक महा, राजनीति राजेश॥

मायापति गरुड़ेश हरि, मन मुकुन्द अभिराम।
कमलनयन घनश्याम प्रभु, जगन्नाथ सुखधाम॥

वासुदेव देवकी तनय, यशुमति ममता लाल।
नंदलाल राधारमण, मनमोहन गोपाल॥

गोपेश्वर मधुरेश प्रभु, मुरलीधर मधुराग।
दाउ सुभद्रा साथ में, जगन्नाथ अनुराग॥

ललना राधा हिय प्रिया, मधुवन रास विलास।
बंशीधर मुरली मधुर, बाजे राग मिठास॥

गिरिधर गोवर्धन धरे, देवराज मद चूर।
यदुनंदन गोपीरमण, नहीं भक्त से दूर॥

रुक्मिणीश माधव प्रभो, विप्र सुदामा मीत।
नर नारायण रूप में, पार्थ कृष्ण रणजीत॥

रथ यात्रा श्रीनाथजी, पर्व सनातन आज।
रक्षक पालक विष्णु ही, करते पुरी विराज॥

पूजन वन्दन सविनत, जगन्नाथ परिवार।
परम भक्ति हरि पद चरण, भवसागर से पार॥

सज सोलह श्रंगार प्रभु, दाऊ सुभद्रा साथ।
पृथक-पृथक रथ पर चले, लाख-लाख जन हाथ॥

अनुपम मनमोहन सुखद, रथयात्रा अभिराम।
अहोभाग्य दर्शन प्रभो, जगन्नाथ सुखधाम॥

रच ‘निकुंज’ दोहावली, जगन्नाथ पद भक्ति।
परहित पौरुष राष्ट्र हित, दें रचना नवशक्ति॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥