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जीवित पशुओं का आयात-निर्यात सरकार का घोर निंदनीय कुकृत्य

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हमारा देश भारत एक हिंसक देश है, जहाँ दिन-रात खून-खराबा होना आम बात है और आजकल यहाँ पर खून की नदियाँ भी बहने लगी है। यहाँ प्रेम, शांति, भाई-चारा का कोई स्थान नहीं है। सरकार दुहमुँही है, जिसको दोगली भी कहते हैं। वह हमारा दूध-घी छीनकर अपना कोष भरती है। सरकार चार्वाक सिद्धांतों पर चल रही है, यानि उसे धन के अलावा अन्य कोई लालच नहीं है। पद, धन और प्रतिष्ठा के पीछे वह किसी की भी हत्या करा सकती है। इसमें मानव ही नहीं, बल्कि जिन्दा पशु-पक्षियों को मारना, बेचना और निर्यात करना सामान्य बात है।
सरकारें आजकल वृद्ध, पेंशनधारी और परित्यक्त आदि से बहुत अधिक दुखी हैं। कारण कि इनके पालन- पोषण में सरकार का बहुत धन व्यर्थ हो रहा है, पर लोक कल्याणकारी राष्ट्र होने के कारण सरकार का उत्तरदायित्व है कि उनको पाले-पोसे। इसमें खर्च बहुत होने से सरकारों को अब जीवित उपयोगी और रोग रहित जानवरों को निर्यात करने को बाध्य होना पड़ रहा है। वैसे, अवैध रूप से तो पशुओं की तस्करी होती रहती है और अवैध पशु कत्लखानों की संख्या असीमित है।

सरकार मुफ्त की रेवड़ी बांटने में कोई कोताही नहीं करती है, पर जीवित पशुओं का आयात-निर्यात करके केंद्र सरकार घोर निंदनीय कुकृत्य कर रही है।
हर जीव दुःख से डरता है और सब सुख चाहते हैं, परन्तु भारत में सूक्ष्म जीवों को मारने से पाप लगता है। फिर भी उन्हें जीवित निर्यात कर उनकी हत्या कराना और उससे अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करना बड़ी विडम्बना है। एक-एक जीव की आह बहुत खतरनाक होती है-‘रहिमन हाय गरीब की कभी न निष्फल जाय।’ आज उनको भेज रहे हो, ऐसा न हो कल तुम्हें कोई दूसरा तड़पाए। हमारा देश इतना गरीब नहीं है कि, हम जीवित जानवरों का भरण-पोषण न कर सकें। धिक्कार है ऐसी दोगली सरकार को, जो अहिंसा, जीव दया की बात करती है तो दूसरी ओर जिन्दा जानवरों को बेच रही है।
भारत सरकार ने ६ मार्च २०२३ को एचएस कोड एचटीएस कोड का अध्यादेश जारी किया है, जिसका घोर विरोध और निंदा है। इसके अनुसार-
बैल, भैंस, बकरी, बत्तख, कलहंस, टर्की और मकाओ और कोकाटो, मधुमक्खी, तोते आदि जैसे जीवित जानवरों का आयात करने के बारे में जानकारी मिलती है। कैनरी और फिंच, खच्चर, गधे, बछड़े आदि से माल आयात करने के लिए नियमित प्रक्रियाओं और प्रलेखन के अलावा, जीवित पशुओं को आयात करने की विशेष आवश्यकताओं को इसमें समझाया गया है। इसमें पूर्व आयात, आयात और आयात के बाद की प्रक्रियाएं और औपचारिकताएं, पोर्ट प्रतिबंध और दण्डनीय आदि बिंदु भी इसमें बताए हैं।

पापजन्य कृत्य करना, कराना और उसकी अनुमोदना करने का समान दोष होता है, लगता है। केंद्र सरकार की नादिरशाही नीतियों का विरोध करते हुए आग्रह है कि, तत्काल इस अधिनियम पर प्रतिबन्ध लगाकर निरस्त करें।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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