दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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खिले कमल कीचड़ में कैसे,
गहन अंधेरा दीप जले।
उल्टे बांस बरेली जैसे,
मछली उल्टी धार चले।
तूफान भरे सागर में वो ही,
जीवन नइया चलाता है।
कर जिगरा फौलाद का अपना,
चिड़िया बाज लड़ाता है।
नहीं आसां है संघर्षों के,
तूफां में नइया खेना।
काजल की कोठर में रहकर ,
निष्कलंक जीवन जीना।
सत्य मार्ग पर चलना है तो,
काँटों से लड़ना होगा।
झूठ-फरेब के जाल से बचकर,
मंजिल तक बढ़ना होगा।
बचपन युवपन में राह भटक कर ,
जो कीचड़ के संग-संग है।
नरक गन्दगी में सड़-सड़ कर,
गलता उनका जीवन है।
उसी गन्दगी कीचड़ में जो,
जीवन कमल खिलाता है।
जीवन संघर्षो से लड़कर,
अंधियारे जगमगाता है।
राह कठिन है संघर्षों की,
पर मंजिल मिलना निश्चित है।
खुद जलकर दीपक बन जाना,
यह भी तो इक प्रायश्चित है।
देश-समाज पर अहसान करो तुम,
नाश जवानी यूँ न करो।
तूफानों से खुद ही बचकर,
संघर्षों से यूँ न डरो।
प्रताप,शिवाजी,झांसी रानी,
सब तुम पर अभिमान करे।
भगत,चन्द्र,विवेक सरीखे,
प्राण वरण तुम करके मरे।
भारत का तुम सुखद भविष्य,
बनकर जग को दिखलाओ।
कीचड़ में संघर्षों से खिलकर,
अपना जीवन-कमल खिलाओ॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|