कुल पृष्ठ दर्शन : 244

You are currently viewing संघर्ष जीत प्रतिमानक नित

संघर्ष जीत प्रतिमानक नित

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

****************************************

है जीवन का सोपान जटिल,
संघर्ष मार्ग दिग्दर्शक है।
आनंद विजय साफल्य समझ,
संघर्ष पूर्ण यायावर है।

संघर्ष बिना औचित्य कहाँ,
आनंद नीरस विरासत है।
संघर्ष विरत जीवन निष्फल,
संतोष नहीं अन्तर्मन है।

संघर्ष सदा अनुभूति नवल,
संकल्प समर्पण सत्पथ है।
पत्थर की लकीर साहस नित,
त्याग न्याय पथ संघर्षक है।

आए ध्येय पथ जो भी विप्लव,
मँझधार नाव संघर्षक है।
तूफ़ान,भूकम्प,जलप्लावन,
कोरोना का विध्वंसक है।

संघर्ष करे निर्माण मनुज,
यायावर पथ सम्वाहक है।
बन धीर-वीर गंभीर सजग,
स्वादु विजय रस चख पाता है।

देशार्थ स्वयं बलिदान वतन,
पुरुषार्थ मनुज बन पाता है।
धर्मार्थ पथिक परमारथ मन,
संघर्ष राह दिखलाता है।

संघर्ष बिना पथ सुगम कहाँ,
काँटों से घिर पथ दुर्गम है।
दर्रे घाटी पथ गिरि निर्झर,
विपदा पतवार बनाता है।

विश्वास स्वयं जाग्रत मानव,
स्वाभिमान मनुज जग पाता है।
आत्म निर्भरता सुदृढ़ मानस,
संघर्ष सीख दे जाता है।

संघर्ष बिना साफल्य नहीं,
व्यक्तित्व कहाँ बन पाता है।
अस्तित्व कहाँ संघर्ष रहित,
कहँ सत्य ज्ञान हो पाता है।

संघर्ष जीत प्रतिमानक नित,
मुस्कान समुन्नत कारण है।
चहुँदिक् विकास कल्याण सुखद,
विश्वास ईश मन गायक है।

सुख-दु:ख जीवन संगम बोधन,
संघर्ष सीख दे जाता है।
कर्तव्य पथिक निःस्वार्थ यतन,
सन्मार्ग सिद्धि फल दाता है।

छल राग द्वेष मन कोप मनुज,
संघर्ष शस्त्र से मरता है।
दायित्व बोध हो नित जीवन,
अधिका स्वयं मिल जाता है।

संघर्ष मीत नवनीत सफल,
नित कीर्ति धवल बन जाता है।
पलभर जीवन देशार्थ वतन,
इतिहास स्वर्ण बन जाता है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply