हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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ऊँचे शिखर से निकली नदियाँ,
कहां सागर से पहले रुकती हैं ?
लाख दीवारों से रोके चाहे कोई,
वे डैम फांदती हैं न कि झुकती हैं।
कौन बनाता है कहाँ राहें कब उनको ?
वे खुद ही अपनी राहें नित बनाती हैं
कहीं चलती हैं सीधी धारा-सी मैदानों में,
कहीं पहाड़ों में टकरा कर बलखाती हैं।
सीधी चलना नदी की सरलता है होती,
बलखाना जीवन संघर्षों से टकराना है
नदी का स्वभाव है हमेशा आगे बढ़ना,
रोकने में लगा रहता सदा ही जमाना है।
हो मंजिल कितनी अनजान या दूर,
वे बेपरवाह हो,अपना जल बहाती हैं
लेती कहाँ है विश्राम वे राह में तब तक ?
जब तक वे प्रिय सागर में न मिल जाती हैं।
मंजिल को पाने की हो होड़ नदी- सी तो,
सफलता क्यों किसी के कदम न चूमेगी ?
हो सूरज-सी नियमावली गर जीवन में तो,
दुनिया फिर उसके चारों ओर क्यों न घूमेंगी?
झुकती नहीं है दुनिया आज, कौन कहता है ?
झुकती है पर इसको झुकाने वाला चाहिए।
समझती नहीं है दुनिया आज, कौन कहता है ?
समझती है, पर इसको समझाने वाला चाहिए।
ज्यों सागर में मिलकर विलीन है वे होती,
त्यूं जीवन अन्त में परम में मिल जाता है।
संघर्ष है कहानी हर जीवन की इस जग में,
खुशी का फुल संघर्ष धर्म में खिल जाता है॥