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‘संविधान और राजभाषा’ विषय पर संगोष्ठी में हुई गहन चर्चा

दिल्ली।

१५ सितंबर को भारतीय समय अनुसार शाम को विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन यूके और भारतीय भाषा मंच के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा ‘संविधान और राजभाषा’ विषय पर साप्ताहिक संगोष्ठी आयोजित की गई। प्रथम प्रवासी संसार पत्रिका के संपादक डॉ. राकेश पांडेय ने अपने वक्तव्य में इस पर विविध जानकारी दी।
प्रारम्भ में प्रसिद्ध लेखिका अनिता वर्मा द्वारा संगोष्ठी में आगमित सभी अतिथियों और श्रोताओं का स्वागत किया गया।
भारत सरकार (रेल मंत्रालय) के निदेशक (राजभाषा) डॉ. वरुण कुमार ने ‘संविधान और राजभाषा’ के संबंध में लघु पूर्वपीठिका प्रस्तुत करते हुए पुनः सभी वक्ताओं और श्रोताओं का स्वागत किया। अनिता वर्मा ने डॉ. पांडेय का पटल पर वक्तव्य के लिए स्वागत किया। डॉ. पांडेय ने हिंदी को राजभाषा बनाए जाने की प्रक्रिया का विवरण दिया। उन्होंने बताया कि संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए कई विचार-विमर्श हुए। ऐतिहासिक संदर्भ में यह भी बताया कि कैसे भारतीय भाषाओं और उनके उपयोग पर वाद-विवाद हुआ और अंततः हिंदी को एक महत्वपूर्ण जगह दी गई।
तत्पश्चात मुख्य वक्ता दिल्ली विवि के सहायक आचार्य (हिंदी विभाग) डॉ. रंजन गिरि ने संविधान सभा के कार्य की जटिलताओं, विशेषकर भाषा के संदर्भ में विचार साझा करते हुए हिंदी और हिंदुस्तानी के मुद्दों पर बताया कि कैसे उच्च भाषा में प्रयोग की कमी और विभिन्न भाषाओं के बीच समन्वय ने राजभाषा के मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है। कुल मिलाकर राजभाषा संबंधी इतिहास से अमृतकाल तक के विषयों पर प्रकाश डाला।
निदेशक डॉ. कुमार ने राजभाषा विषय को विस्तार देते हुए संविधान द्वारा दी गई शक्तियों का सही प्रयोग नहीं होने की बात कही।
तत्पश्चात सहयोग परिषद के मानद निदेशक और अध्यक्ष नारायण कुमार ने वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत तक और स्वतंत्रता संग्राम से संविधान निर्माण तक की प्रक्रिया में हिंदी के स्थान का महत्व बताया

कार्यक्रम में यूके वातायन की संरक्षक दिव्या माथुर, सुनिता पाहुजा, पुर्तगाल से अनिता अनिल, जापान के प्रो. तोमियो मिजोकामी‌ और कनाडा से डॉ. शैलजा सक्सेना आदि हिंदी विद्वानों ने प्रतिभागिता की। अनिल जोशी के मार्गदर्शन में यह संगोष्ठी बहुत ही सफल रही। डॉ. जयशंकर यादव ने आभार प्रकट किया।