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सकारात्मकता के साथ समाधान को भी उकेरने की आवश्यकता

साप्ताहिक गोष्ठी..

भोपाल (मप्र)।

दर्द, निराशा, शोक, संताप और पीड़ा का नकारात्मक भाव ही लघुकथाओं की पहचान ना बन जाए। लघुकथाकारों को लघुकथाओं में सकारात्मकता के साथ समस्याओं के समाधान को भी प्रभावी ढंग से उकेरने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ लघुकथाकार कर्नल डॉ. गिरजेश सक्सेना ने यह बात लघुकथा शोध केंद्र (भोपाल) द्वारा आयोजित साप्ताहिक आभासी गोष्ठी के लघुकथा पाठ एवं विमर्श में वरिष्ठ लघुकथाकार पदम गोधा (गुरुग्राम) के लघुकथा पाठ आयोजन में उनकी लघुकथाओं पर समीक्षा करते हुए कही।

प्रारंभ में केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने स्वागत उद्बोधन दिया। तत्पश्चात् पदम गोधा ने बिखरते-टूटते परिवारों, वृद्धों की समस्याओं जैसी समस्याओं पर ‘दो रोटी’ आदि प्रभावी लघुकथाओं का पाठ किया। गोष्ठी में साहित्य अकादमी मप्र के पूर्व निदेशक डॉ. उमेश कुमार सिंह ने विशिष्ट वक्ता के रूप में कहा कि, हर लेखक और समीक्षक की दृष्टि अलग होती है, जो हमारे लेखन को बहुआयामी बनाती है। एक आयु के बाद वृद्धजनों को एक ‘ट्रस्टी’ के रूप में अनासक्त भाव से जीवन जीना चाहिए, जिससे राग-द्वेष से मुक्त जीवन जी सकते हैं। इस गोष्ठी में अनिता रश्मि व डॉ. मालती बसंत आदि ने महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की। आयोजन में देशभर के अनेक लघुकथा प्रेमी, पाठक और लेखक भी उपस्थित रहे। गोष्ठी का सरस संचालन लघुकथाकार विजय सिंह चौहान (इंदौर) ने किया।