अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
******************************************
कई सवाल
कैसे ये सुलझाऊँ
रोज बवाल।
ये टूटे रिश्ते
कितना भी संभालूं
छूटते रिश्ते।
वक्त के ज़ख्म
आखिर कब तक ?
निभाएं हम।
रूप ही भला
मन कौन देखता ?
सबक मिला।
कैसे ठहरें ?
यूँ उतार-चढ़ाव
जैसे लहरें।
प्रेम परीक्षा
ऐसे जियो-वैसे न
दूजों की इच्छा।
यकीन नहीं
साथ चलेंगे सब
सिद्ध हो कैसे ?
जीवन चक्र
हार-जीत भावना
है दृष्टि वक्र।
ख़्वाब अनेक
किधर चलें हम
है रास्ता एक।
लगाई अर्जी
कृपा ईश्वर मर्जी
जो बरसेगी॥