डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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सज्जनता के रूप में,
छलना मत संसार।
अपनेपन के ढोंग से,
करो नहीं व्यापार॥
सज्जन संगत से सदा,
कर चरित्र निर्माण।
सदाचार के कर्म से,
मिले जगत में त्राण॥
ज्ञान दीप जलता रहे,
सज्जन बन तू खास।
उर से सारे तम मिटे,
मन में भरे उजास॥
सज्जन की पहचान में,
करो नहीं तुम भूल।
ज्ञान धनिक बनकर सदा,
बनो चमन का फूल॥
सज्जन गुण के खान अति
बाँटे ज्ञान अपार।
निर्मलता के भाव से,
करे बुद्धि संचार॥
सज्जन से लो सीख तुम,
आये चरित निखार।
उनकी बातों में सदा,
झलके हैं संस्कार॥
सत संगत कर जाइए,
कहते लोग कुलीन।
दुष्ट कर्म को त्यागिए,
होना नहीं अधीन॥
सारे गुण को तौलिए,
सज्जन मन अति धीर।
उसके निर्मल भाव ही,
शुद्ध ताल सम नीर॥
शिष्ट रखो तुम भावना,
मिले तभी सत्कार।
सज्जनता के पुंज से,
सुरभित कर संसार॥
भले आदमी बन सदा,
मिले भव्य पहचान।
कहे ‘रमा’ ये सर्वदा,
बात सत्य तू मान॥
परिचय-श्रीमति डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’ का जन्म स्थान जिला रायगढ़(छग) स्थित खुड़बेना (सारंगढ़) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-३) सड्डू में निवासरत हैं, जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार-जिला जांजगीर चाम्पा,छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य निवासी श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी),एम.फिल.,सेट (हिंदी) सी.जी.(व्यापमं)की शिक्षा हासिल की है। आपने पी-एच.डी. (हिंदी व्यंग्य साहित्य) भी की है। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखन विधा-कहानी,कविता,लेख(हिंदी,छत्
तीसगढ़ी)और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्य में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। विशेष उपलब्धि-विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी,शोध-पत्र,राष्ट्रीय-अं तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व साहित्यिक समूहों में सतत साहित्यिक लेखन है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।