अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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लोकसभा चुनाव-२०२४…
“देश में लोकतंत्र है, जिसमें जनता ही राजा है”, यह बात लोकसभा चुनाव २०२४ के नतीजों में अलग-अलग दलों को मिली हार-जीत से समझी जा सकती है। इसलिए जनता को बधाई कि, उसने बोलकर भी बहुत छिपाए रखा और भाजपा-कांग्रेस को बहुत कुछ समझा दिया।
राजग को बहुमत तो मिला है, भाजपा ४०० पार का लक्ष्य आँकड़ों से प्राप्त नहीं कर सकी। नतीजों में इस बार इंडिया गठबंधन ने भाजपा और सहयोगियों को कड़ी टक्कर दी है, जो जनता की पसंद का तेवर समझने का साफ संकेत है। भाजपा की अगुवाई में राजग जीत की तिकड़ी अनुसार भले ही नरेन्द्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बना दे, मगर इस खिचड़ी सरकार के भी भविष्य में बुरे संकेत दिखने की सम्भावना बनी रहेगी, क्योंकि गठबंधन की अलग राजनीतिक समस्याएँ होती हैं, जिससे इस सम्बन्ध में गाँठ आती ही है।
सारी सीटों पर हार-जीत के नतीजे आने के बाद देश की ५४३ लोकसभा सीटों में से भाजपा ने सबसे बड़े दल के नाते लोकसभा चुनाव २०२४ के लिए २९३ लोकसभा क्षेत्रों में विजयश्री का वरण किया है, तो इस बार कांग्रेस ने अपनी स्थिति बेहतर की है। यानी अकेले १०० और इंडिया गठबंधन के रूप में २३३ पर आई है। शेष दलों में दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता के नाते राजनीतिक वजन केवल शरद पंवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, मुलायम सिंह यादव की सपा, उद्धव ठाकरे की शिव सेना और नीतीश कुमार की जद यू का दिखा है।
इन नतीजों से तस्वीर स्पष्ट है क़ि, नरेन्द्र मोदी की सरकार बन जाएगी, मगर भाजपा अपने दम पर बड़े बहुमत से दूर रही है। ४०० पार का नारा देने वाली भाजपा के लिए ये नतीजे बिजली के झटके से कम नहीं हैं। अब तक के लोकसभा चुनाव में भाजपा की यह सतत तीसरी जीत और नरेन्द्र मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना नया कीर्तिमान होगा, लेकिन यह भी स्वीकारना होगा क़ि, इस बार इंडिया गठबंधन ने जनता को अपने से जोड़ा है और कड़ी टक्कर दी है। हालांकि, इसमें जनता की अनेक मुद्दों पर भाजपा से नाराजी भी शामिल है। जिस उत्तरप्रदेश से केन्द्र के लिए भाजपा सर्वाधिक आश्वस्त थी, वहाँ से बड़ा झटका लगा है। इससे आगे के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के सामने भी संकट तय है, साथ ही भाजपा से आगे निकली सपा आगामी विस चुनाव में भी कड़ा संघर्ष कराएगी।
लोकसभा चुनाव के इन नतीजों से भाजपा का ४०० पार का सपना टूटा है और यह परिणाम व्यक्तिगत रूप से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए भी चिंताजनक हैं। राजनीति में जीत और हार चलती है, पर ऐसा परिणाम उन्होंने सोचा नहीं था कि, जीत कर भी खुलकर खुशी नहीं मना सकते हैं।
दरअसल, देश की करीब ५५ पार्टियों के ८३६० उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला जनता बनाम मतदाताओं ने किया ही ऐसा है कि, सबको सोचना पड़ेगा। शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू और नीतिश कुमार सहित भाजपा नेतृत्व और कांग्रेस संगठन को भी चिंतन करना होगा कि आखिर ईवीएम, राम मंदिर, बेरोजगारी, मँहगाई, घोटाले या देश-विदेशी नीति और अर्थव्यस्था आदि को लेकर चुनाव में जो माहौल बनाया गया, उसका जवाब जनता ने क्या दिया है। भाजपा को जो सीटें मिली हैं, वह देश के नजरिए से बहुत ही स्पष्ट तस्वीर और आशादायक है। विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपने अनुमान और अनुभव से जो अलग परिणाम आया है, जबकि मप्र में नया मुख्यमंत्री होने के बाद भी मतदाताओं ने विश्वास कायम होना दिखाया है।
इस चुनाव में अनेक चीजें बहुत अच्छी हुई हैं, जिससे दलों को जन-मत की ताकत दिखती है, और इसे सबको समझना चाहिए। अनेक दल एकजुट होकर देश की सेवा के लिए आगे आ सकते हैं, या खुद का सियासी राग अलग ही अलापेंगे, यह भी चिंतन आवश्यक है।
बेरोजगारी, मँहगाई, राम मंदिर, विकास, पाकिस्तान, चीन, पीओके और धारा ३७० सहित अनेक प्रादेशिक-राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपानीत केन्द्र सरकार ने खूब बात की, मगर इससे स्थानीय स्तर पर अनेक जगह नुकसान भी हुआ। मोदी लहर के नाम पर अनेक प्रत्याशी स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीयता की बात करते रहे, जिससे जीत मिली और हार भी। सीधी-सी बात है कि, जनता को अपने स्थानीय सांसद से स्थानीय विकास, समस्या और परिणाम से मतलब है, फिर बाद में पाकिस्तान और आस्था आदि के मामले आते हैं, लेकिन मुगालते में इस पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाना भी हार का एक बड़ा कारण है। भाजपा को आगे के लिए समीक्षा करनी होगी, तभी आगे जनमत का साफ लाभ मिलेगा, वरना तय है कि, आने वाले समय में अलग-अलग राज्यों में विधानसभा चुनावों में ऐसा ही संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि आम आदमी को उसकी समस्या का हल, काम और नौकरी-व्यवसाय से अधिक मतलब है, ना कि मंदिर बनाने और युद्ध से। ये सब भी कीजिए, पर सबसे पहली प्राथमिकता तो महँगाई पर अंकुश और रोजगार ही होनी चाहिए।