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सफलता के लिए श्रम-संघर्ष के साथ भाग्य भी जरुरी

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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श्रम आपको उस तरफ ले जाता है,जिधर आपका लक्ष्य है,लेकिन भाग्य साथ हो तो लक्ष्य या उससे ज्यादा मिल पाता है। यदि भाग्य में नहीं है,तो लक्ष्य पास होने के बावजूद सामने से निकल जाता है। सफलता दिखती है, मिलती नहीं।

बिलकुल यही स्थिति भारत की इस बार के क्रिकेट वर्ल्ड कप में रही,सफलता के परचम लहराते हुए आगे बढ़ रही भारतीय क्रिकेट टीम सेमीफाइनल में प्रवेश कर गई।सेमीफाइनल के पहले केवल एक मैच जान-बूझकर हारी और सारे मैच बड़े आँकड़े पर जीते भी,जो अपने-आपमें मिसाल बने,लेकिन सेमीफाइनल में बहुत ही छोटे से आँकड़े को पार करने में पसीने छूट गये। न्यूजीलैंड से खेल की शुरुआत हुई। लाजवाब गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण किया और एक छोटे से आँकड़े पर ही न्यूजीलैंड को रोके रखा,बरसात की मेहरबानी से खेल का दूसरा भाग दूसरे दिन हुआ। पूरा आराम का समय मिला,आँकड़ा भी इतना छोटा कि चुटकी में पूरा हो जाए। इसलिए टीम अति आत्मविश्वास से भरपूर थी,लेकिन भाग्य की विडम्बना कि शुरुआत में ही ४ खिलाड़ी १० ओवर के पहले ही खेल से बाहर हो गये,और एक छोटा-सा आँकड़ा ही बना पाए। थोड़े संघर्ष के बाद २ खिलाड़ी और खेल से बाहर हो गये। खेल का पूरा भार २ महत्वपूर्ण खिलाड़ियों के कंधों पर आ गया। महेन्द्रसिंह धोनी और अजय जड़ेजा ने अंतिम दौर तक पूरी ताकत के साथ संघर्ष किया,और सफलता के बहुत नजदीक तक टीम को पहुंचा भी दिया,पर भाग्य एक बार फिर साथ छोड़ गया,और आँखों के सामने से सफलता ओझल होने लगी। छोटा-सा आँकड़ा और २ खिलाड़ियों के अदम्य साहस को पूरा देश एकटक नजर से देख रहा था,पर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। दोनों एक-एक कर पवेलियन को चले गये,और मैच में भारत की हार तय हो गई। हालाँकि,कुछ गेंद और ३ खिलाड़ी बाकी थे लेकिन वीर योद्धाओं के जाने के बाद वे सैनिक कितना टिक पाते। चंद मिनटों में ही वे भी खेल से बाहर हो गये और भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप के फायनल में पहुंचते-पहुंचते ही रह गया।

खेल में यह सब सामान्य बात है,२ टीम खेलती है तो एक को हार स्वीकार करना ही होती है,लेकिन जीवन में संघर्ष के लिए २ टीम नहीं,कई टीम इंसान के सामने होती है। सभी से कड़ा संघर्ष भी आखरी साँस तक जारी रहता है,और लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक क्षण प्रयास जारी रखना पड़ता है। इसमें सफलता तब मानी जाती है,जब फल की प्राप्ति मनोनुकूल हो या उससे अधिक हो और यह तभी संभव है,जब संघर्ष के दौरान भाग्य साथ में हो। नहीं तो संघर्ष भी व्यर्थ चला जाता है,केवल इतिहास की चीज बनकर रह जाता है। सफलता को दुनिया सलाम करती है,और असफलता का संघर्ष केवल इतिहास के पन्नों में दबा पड़ा रहता है। सफलता के लिए श्रम के महत्व को नकारा नहीं जा सकता,और भाग्य के महत्व को भी कम नहीं कहा जा सकता। हालाँकि,भाग्य वह है जिसे हर कोई नहीं जान सकता,लेकिन श्रम और संघर्ष सामने दिखाई देते हैं। यही कारण है कि श्रीकृष्ण गीता में कर्म करने की शिक्षा देते हैं,और फल को आने वाले समय पर छोड़ने को कहते हैं। सफलता नहीं भी मिली,तो सीख जरुर मिलेगी जो आगे सफल होने के लिए रास्ता बनाएगी। श्रम और संघर्ष चलता रहे,जब भाग्य भी अनुकूल होगा,तो सफलता मिल जाएगी।