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सफेद बादल-काले बादल

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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कहां बरसती है
बरसात,
भले ही हो
बादलों की बारात।
सूखी रूई के फाए से,
इधर-उधर
उड़ते रहते हैं।
काम न आए
मरहम रखने के भी,
जख्म हरे और
रिसते रहते हैं।
और तो और,
ठंड में गर्माहट का
न नामो-निशान,
कैसे कोई सूरत
को कह दे,
सुंदर।
सीरत ही होती है,
सही में गुणों
का आदर।
आभासी और
काल्पनिक,
तरह-तरह के रूपों
से भ्रमित,
काम भी न आते
रंग भरने के,
कल्पनाओं में।
बस यूँ ही इधर-उधर
यायावर से
टहलते।
इंतजार…बस,
इंतजार रहता है
सिर्फ काले घने,
बादलों का
घने-घने काले-काले,
उमड़ते-घुमड़ते।
बिजलियों से,
प्रकाशित
व्योम पर चलते,
और फुदकते।
काले हैं तन के,
पर मन के हैं
उजले,
बरसे ये तो
अंधियारे घरों में,
चिराग जगमग
करते जले।
बरस सके बूंदों
की रिमझिम से,
धरती के तन पर
मन पर,
भिगो सके आँचल को
आद्रता पहुंचे,
आत्मा तक।
गति बने हरियाली,
की उष्ण रेत के
आँचल तक।
फसलें बहे,
अनाज उपजे
और तन-मन,
हरा कर दे।
सफेद बादल,
सूखे रुई के फाए से
काले बादल,
घनघोर घटा बरसाए से॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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