प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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शिक्षक समाज का दर्पण…
एक नवजात शिशु जब जन्म लेता है, तो उसकी पहली शिक्षक उसकी माँ होती है। माँ उसके शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास भी करती है। उसको बोलना, चलना, उठना, बैठना, खाना-पीना आदि सभी कार्यों को सिखाती है। बच्चे का पहला विद्यालय उसका घर होता है, जहाँ उसको इस तरह से तैयार किया जाता है कि वह समाज में रह सके।
जब बच्चा घर के बाहर निकलता है तो वह समाज के तौर- तरीक़ों को सीखता है। सही-गलत, अच्छा-बुरा समझने लगता है। उसके बाद उसका संपूर्ण विकास उस विद्यालय में होता है, जहां जाकर एक विद्यार्थी अपने सपनों को पूरा करने के लिए तैयार होता है। तब उस विद्यार्थी का शिल्पकार एक शिक्षक ही होता है, ताकि एक बच्चा अपने सपनों को पूरा कर माता-पिता और समाज का नाम रोशन कर सके।
चिकित्सक, अभियंता, वकील, व्यापारी, कलाकार, लेखक, पायलट, सैनिक, पुलिस आदि सभी का शिल्पकार एक शिक्षक है, जो समाज में सिर उठाकर जीवन जीने के काबिल बनाता है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जहाँ अपना जीवन यापन करने के लिए वह कुछ न कुछ कार्य करता है एवं सीखता है, पढ़ता-लिखता है। वह शिक्षा से एक शिक्षक के माध्यम से सही मार्गदर्शन लेकर कठिन परिश्रम कर आगे बढ़ता है और अपने-आपको तैयार कर समाज में एक बदलाव लाता है। एक शिक्षक कभी थकता नहीं है, वह अपने विद्यार्थी को सही शिक्षा देकर एक अच्छे समाज का निर्माण करने में पीछे नहीं हटता। वह समाज के लिए हमेशा कार्य करता रहता है।
शिक्षा द्वारा एक छात्र समाज में अपनी एक पहचान बनाता है और समाज का नवनिर्माण करता है।
५ सितंबर डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। आधुनिकता की इस चकाचौंध में आभासी शिक्षा माध्यम में छात्र शिक्षक से दूर होते जा रहे हैं एवं शिक्षक के महत्व को भूलते जा रहे हैं। आज के विद्यार्थियों को याद दिलाने तथा उन्हें शिक्षक और शिक्षा का महत्व समझाने के लिए यह दिवस प्रत्येक विद्यालय और महाविद्यालय में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, और मनाना भी चाहिए।