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वो खूब जानती है प्रेम…

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूँ…
वो खुद सूंघ लेती है अपनी नाक लगाकर,
मेरे प्रेम की गंध।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम पर मरता हूँ…
वो खुद पता कर लेगी एक दिन,
मेरे मरने की उम्र।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम्हें चाहता हूँ…
वो खुद जान लेती है,
वो मेरे चाहने से पहले
पढ़ लेती है सौ बार मेरी आँखें।
में उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम्हें आभूषणों से लाद दूँगा…
वो खूब जानती है प्रेम और,
देह में लोहे का विभाजन।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम्हें हमेशा खुश रखूंगा…
वो स्वत:महसूस कर लेगी,
तितलियों का अस्तित्व कहां है।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
तुम चाँद की तरह दिखती हो…
वो अच्छे से जानती है,
आकाश में कब ग्रहण लगता है,कब नहीं।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम पर कितना विश्वास करता हूँ…
वो खुद आभास कर लेती है
अपने कंधे पर रखे मेरे हाथ का वजन।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता…
उसने खूब देखा,अकेले पेड़ों को,
जिन्दगी बसर करते हुए।
मैंं उसे कभी नहीं बताता,
अपने प्रेम की गहराई…
वो खुद तलाश लेती,
इस कुँए में कितना है पानी।
मैं उसे कभी नहीं बताता कि,
तुम्हारे लिए चाँद-तारे तोड़ लाऊँगा…
वो खूब जानती है,
मेरे हाथों की अन्तिम पहुंच॥

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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