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समाज निर्माण में कला की महती भूमिका

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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यह जीवन एक रंगमंच है। यहाँ हर एक व्यक्ति कलाकार है, जो अपनी अलग-अलग भूमिका अदा करता है। जीवन जीना भी एक कला है। प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक कला छिपी होती है। कला मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह हमारी भावनाओं, विचारों और सांस्कृतिक धरोहर को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम भी है।कला के अनेक रूप होते हैं-चित्रकला, पाककला, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, रंगमंच व साहित्य आदि। हर प्रकार की कला में एक विशेष सौंदर्य और सृजनात्मकता और भाव जुड़ा होता है। आज विद्यालयों में बच्चों की कला को परखने के लिए अलग-अलग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें संगीत से लेकर नृत्य, खेल-कूद, नाटक और मोबाइल से जुड़े कई ऐसे कार्य हैं, जिससे आप कला का प्रदर्शन कर सकते हैं। एक विद्यार्थी अपनी कला को परख और पहचान कर अपना भविष्य बना सकता है एवं और उसमें रोजगार भी प्राप्त कर सकता है।

आज के आधुनिक युग में कला रोजगार का माध्यम भी बन गया है। कला समाज के विकास में अहम भूमिका निभाती है। यह हमारी संस्कृति और इतिहास को संजोकर रखने का कार्य करती है। जब हम किसी चित्र को देखते हैं, कोई कविता पढ़ते हैं या संगीत सुनते हैं, तो हम न केवल उसका आनंद लेते हैं, बल्कि उसके पीछे छिपे भावों को भी महसूस करते हैं। कला बच्चों की कल्पनाशक्ति को विकसित करती है। यह उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है और रचनात्मकता को बढ़ावा देती है। आजकल विद्यालयों में कला की शिक्षा को विशेष महत्व दिया जा रहा है, ताकि बच्चों का समग्र विकास हो सके।
कला जीवन को रंगों से भर देती है। यह हमें सोचने, समझने और महसूस करने की क्षमता प्रदान करती है। एक संवेदनशील और विकसित समाज के निर्माण में कला की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।