सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…
प्रतिवर्ष ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है, जिसमें महिलाओं के किए कार्यों की बढ़-चढ़कर प्रशंसा की जाती है। होना भी चाहिए, क्योंकि नारी तो गुणों की खान है। प्रभु तक ने नारी रूपी कृति की रचना इतने सुंदर ढ़ंग से की है कि वह माँ, बहन, भार्या, बेटी व सखी आदि बनकर पुरूष को जन्म देने, पालन पोषण, प्रेमपूर्वक उसके जीवन सुधार में साथी बन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नारी के स्नेह, सहयोग, समझदारी, सहनशीलता को कभी भी नकारा नहीं जा सकता। यूँ तो भारत में प्राचीनकाल से ही नारियों की स्थिति बहुत उन्नत रही थी, जिसके कई प्रमाण हमारे वेद, पुराण, स्मृति आदि धर्मग्रंथों में पढ़ने को मिलते हैं।
हमारी मनुस्मृति कहती है-“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः”
अर्थात जहाँ नारी की पूजा जाती है, वहाँ देवताओं का वास होता है। हमारे यहाँ प्राचीनकाल में कोई कन्या भ्रूण हत्या, बालिका विवाह, दहेज, घूँघट प्रथा व अशिक्षित बालिकाओं के प्रमाण नहीं मिलते। हाँ, सशक्त नारी स्थिति के प्रमाण अवश्य ही पाए गए हैं। विदुषी नारियों, जैसे-गार्गी, सीता, मैत्रेयी, लोपमुद्रा, घोषा, अपाला, विश्ववारा, इंद्राणी, लीलावती, सुलभा, द्रोपदी व अरूंधती आदि के नाम मिलते हैं। नारी को मिली समानता का प्रमाण स्वयंवर होते थे, तो पिता, पति के कार्यों में हाथ बंटाने वाली नारियों के भी उदाहरण मिलते हैं। हमारे कृषि प्रधान देश में तो क्या पुरूष, क्या स्त्री सभी आर्थिक स्वावलंबी रहे हैं। कुल मिलाकर प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी थी, पर धीरे-धीरे मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं के आने से, उनकी संस्कृतियों के भारत में प्रवेश करने से नारियों की स्थिति में गिरावट आई और कुप्रथाएं भी घर करती गई। इन्हें समय-समय पर आधुनिक भारत में समाप्त भी कर दिया गया और उसके विरूद्ध कानून भी बना दिए गए, ताकि महिलाएं स्नेह, आदर, सम्मान, समानता व सक्षमता से स्वावलंबी जीवन जी सकें। इसमें कोई संदेह भी नहीं है, कि आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार भी हुआ है। आज वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर धरती से आकाश तक का सफर तय कर रही हैं।
आज के समय में नारी का कार्यक्षेत्र घर तक सीमित नहीं रह गया है। वह हर उस कार्यक्षेत्र में सक्रिय है, जिसमें केवल कभी पुरूषों का दबदबा था। हालांकि, भारत में अभी भी महिलाओं को समानता का अधिकार पूरी तरह से नहीं मिला है। विभिन्न रिपोर्ट और अध्ययनों से पता चलता है, कि महिलाओं को कई क्षेत्रों में अभी भी बराबरी नहीं मिली है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल दो-तिहाई कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। आर्थिक असमानता भी दृष्टिगोचर है। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में कमी आई है। वहीं समान काम के लिए समान वेतन के मामले में भी असमानता है। राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भी महिलाओं के सामने अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, तो सामाजिक असमानता के अंतर्गत आज भी भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने तथा समानता लाने के लिए अभी भी कई प्रयास किए जा रहे हैं, जो जरूरी भी है, क्योंकि हर महिला समान स्वभाव की नहीं होती, न ही सबकी परवरिश, परिस्थिति एक- सी होती है, जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो।
मेरा मानना यह भी है, कि वर्तमान में कुछ नारियाँ बहुत आधुनिक हो चुकी है, और कुछ अभी भी उतनी सक्षम नहीं बन पाई, जितना होना चाहिए। संक्षेप में कहें तो नारियों की स्थिति को ३ भागों में बांटा जा सकता है-पहली शोषित, दूसरी सामान्य आधुनिक और तीसरी अति आधुनिक। यूँ शोषित महिलाओं का प्रतिशत कम है, वहीं सामान्य आधुनिक नारियाँ घर-परिवार के साथ बाहर की जिम्मेदारियाँ भी अपने संस्कारों व मान-मर्यादा में रहकर निभा रही है, लेकिन अति आधुनिक नारियों के दिमाग पर एक फितूर चढ़ा है, जिसमें वह खुद की नुमाईश करती नज़र आती है। इसमें कम वस्त्र पहनना, व्यसन करना, ‘लिव इन रिलेशन’ में रहना, सोशल मीडिया का गलत प्रयोग कर खुद को समाज में व्यंजन की तरह परोसना शामिल है। ये अति आधुनिक होने की दौड़ में इतना आगे निकल चुकी हैं, कि पुरूषों द्वारा किए जाने वाले दमनकारी कामों को भी करना चाहती हैं।
हम इन दिनों एक ओर नारियों का अच्छा स्वरूप देख रहे हैं, तो ऐसा रूप भी देख रहे हैं जो महिला सशक्तीकरण से अधिक महिला द्वारा दमनीकरण प्रतीत होता है। कहा जाता है कि सफल पुरूष के पीछे किसी न किसी नारी का हाथ होता है। वैसे ही किसी स्त्री की सफलता में पिता, भाई, पति, हितैषी पुरूष का हाथ जरूर होता है, लेकिन कुछ अति आधुनिक महिलाएं सफलता को पचा नहीं पा रही हैं। जैसे थोड़े दिन पहले हमने कुछ घटनाएं पढ़ी, कि पति ने पत्नियों को पढ़ाया, लिखाया और मुकाम पर पहुंचने के बाद पत्नियाँ खुलेआम पति को दरकिनार कर रही हैं। एक महिला एसडीएम का मामला तो ऐसे ही पूरे भारत में चर्चा का विषय बना था। ऐसा रूप भी देख रहे हैं, कि जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो है, वो पुरूषों को नीचा दिखाना नहीं छोड़ रही है।
हम नारियों का वीभत्स रूप भी देख रहे हैं, जिसमें अतुल सुभाष, मानव शर्मा और आगरा के जितेंद्र ने पत्नी-प्रेमिका से तंग आकर आत्महनन कर लिया। देवास के राजनीतिक परिवार से संबंधित प्रमोद वर्मा ने भी आत्महत्या का प्रयास किया, वहीं महिलाएँ दहेज प्रताड़ना तथा बलात्कार आदि की रपट भी मिथ्यापूर्ण ढंग से दर्ज करवाती पाई जा रही हैं। इन मामलों से स्पष्ट पता चलता है कि पुरूषों को भी वैवाहिक और प्रेम संबंधों में प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। यह एक गंभीर समस्या है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है। हालांकि, इनका प्रतिशत कम है, पर ऐसी नारियों के कारण कानूनी अधिकारों का दुरूपयोग देखने को मिल रहा है, और ऐसी घटनाओं से नारी समाज की साफ-सुधरी छवि धूमिल होती है।
मेरा यहाँ कहने का मतलब यह कदापि नहीं है, कि महिलाओं को उनके मिले अधिकारों से वंचित कर दिया जाए, पर नारी सम्मान के लिए राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से उत्थान के लिए जो कदम बढ़ाए गए हैं, तो ऐसे उदाहरणों के सामने आने पर दूसरी नारियों के व्यक्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
भारत में नारी की छवि सदैव आदर्शमय रही है और आगे भी वैसे ही बनी रही, इसके लिए नारी शक्ति को स्वतंत्रता के दुरूपयोग से बचना चाहिए। नारी की प्रकृति कभी भी क्रूर, व्याभिचारी व अपराधी प्रवृत्ति की नहीं रही है। वह लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती, सीता, सावित्री बनकर अधर्म को हराकर धर्म स्थापित करती आई है। उसने हर युग में गृहकार्य, ज्ञान, कौशल, विज्ञान, शिक्षा के क्षेत्र में कुटुंब, समाज और देश की गौरव पताका फहराई है। अब भी सभी महिलाओं को सशक्तीकरण के कानूनों का सदुपयोग करते हुए शुभ की ओर ही बढ़ते रहना होगा।