गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

मैं उस समय की बात कर रहा हूँ,जब शहर में आवागमन के लिए साईकल का प्रचलन था। दुपहिया वाहन भी इक्के दुक्के ही थे,जबकि चार पहिया वाहन तो ना के बराबर थे। उस समय समाज में आपसी प्रेम-भाईचारा खूब था और ईमानदारी व सादगी से लोग जीवन-यापन करते थे। फिर भी मेरे पिताजी ने कभी साईकल खरीदी ही नहीं,इसलिए साईकल चलाने वाला प्रश्न ही बेईमानी हो जाता है। अब यह जिज्ञासा अवश्य ही होगी कि ऐसा क्यों ? तो बता रहा हूँ –
आज से ६०-६५ साल पहले एक घटनाक्रम में पिता जी के किसी परिचित द्वारा साईकल न वापरने पर जब पूछा,तब उन्होंने बताया कि मेरी ये दो टाँगें ही साईकिल वाले दो पहिए हैं। उसी बातचीत में अपने मित्र को बताया कि,मैं तीन तल्ले पर रहता हूँ और मेरी तरह यहाँ अनेक लोग रहते हैं। सभी की साईकिलें नीचे एक के बाद एक सटी खड़ीं रखनी पड़ती है,और इनको रखते व निकालते वक्त आपसी हल्की खींचातानी न चाहते हुए भी हो ही जाती है,इसलिए मैं भला और मेरी ये दोनों टाँगें।
उसके कुछ सालों बाद जब मैंने नौकरी पर जाना प्रारम्भ कर दिया,तब इस विषय पर मेरे द्वारा पूछने पर उन्होंने मुझे समझाया कि यदि तुम दोनों टाँगों को साईकल के दो पहिए मान इनके भरोसे रहोगे तो बहुत ही ज्यादा सुखी रहोगे। फिर उन्होंने मुझे निम्न बातें समझाई-
-आफिस जाओ,तब रोज नए रास्ते से जाना-आना करो और उसके जो कारण बताए वो इस प्रकार हैं-
*शहर का पूरा भूगोल तुम्हें आसानी से याद भी हो जाएगा और समझ में भी आ जाएगा।
*आवश्यकता पड़ने पर तुम कम दूरी वाला रास्ता काम में ले पाओगे।
*पैदल चलने पर रास्ते में पड़ने वाले हर मन्दिर के बाहर से अपने आप दर्शन हो जाएगा।
*किस रास्ते पर किस वस्तु का बाजार बसा है, ध्यान में रहेगा।
*कहाँ पर कौन-सी वस्तु अच्छी व उचित दाम में मिल सकती है,उसका हमेशा ध्यान करते रहो ताकि किफायत में गुणवत्ता वाला सामान वापर सको।
-पैदल चलते रहने से मोटापा पनपेगा ही नहीं।
-पैदल चलने वाले को डायबिटीज होती नहीं।
-पैदल चलने से टाँगें मजबूत होती हैं।
-पैदल चलने पर किसी के भरोसे नहीं रहोगे,यानि यदि साईकल में किसी भी प्रकार की खराबी हुई तो साईकल सवार को जरा भी पैदल चलना अखरता है।
-पैदल चलने पर शुद्ध हवा फेफड़ों में जाती है,जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी होती है।
-एकसाथ सारा सामान लाने का झंझट नहीं रहेगा, यानि रोज आफिस से लौटते समय आवश्यकता क्रमानुसार उतना ही सामान अपने थैले में डलवाओ जितना आसानी से घर तक ला पाओ। भले ही थोक भाव में सौदा कर बाकी सामान दुकानदार के पास ही रहने दो।
-अति आवश्यकता हो तो झाका(टोकरी लिए मजदूर बाजारों में उपलब्ध रहते हैं।) कर उससे सामान घर भिजवा दो।
-नित्य खरीददारी होने से ताजी सब्जी,फल व फूल घर ला पाओगे।
-भूख भी अच्छी लगेगी,जिससे भोजन समय पर कर पाएंगे जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित माना जाता है।
-पैदल चलने से थकावट आना वाजिबी है,जिसके फलस्वरूप रात को आरामदायक गहरी नींद आएगी।
उपरोक्त को ही पिताश्री की आज्ञा मान आज तक मैं २ टाँगों को ही साईकल के पहिए मान आराम की जिन्दगी जी रहा हूँ,हाँलाकि अब तो घर में साईकल के अलावा दुपहिया वाहन में मोटर साइकिल व चार पहिया वाहन के तौर पर मोटरगाड़ी भी है,लेकिन आज भी केवल उसमें बैठना ही जानता हूँ,चलाना सीखने की कभी ईच्छा ही नहीं हुई।
यह सर्वविदित है कि आज भी अनेक ऐसे हैं जिनके पास साईकल नहीं है। यह सब इस बार कोरोना काल में सभी को परिलक्षित जब हुआ,तब लोगों का झुण्ड सड़कों पर २०००-३००० कि.मी. तक का सफर अपने २ टाँगों के भरोसे पूरा किया। इस कारण ही बरबस याद आ जाती है पंक्तियाँँ-
न बसें काम आयींं,न रेलें काम आयींं।
बुरे वक्त में साहिब,ये दो टाँगे ही काम आयींं॥