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सबकी नजर में स्त्री के लिए सम्मान आवश्यक

दिपाली अरुण गुंड
मुंबई(महाराष्ट्र)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

विधाता ने सृष्टि का निर्माण किया,उसके केन्द्र में स्त्री को रखा। जिस तरह कुम्हार अपना मटका बनाते वक्त केन्द्र पर गीली मिट्टी रखकर उसे घुमाकर उससे सुंदर नाजुक घट या मटका बनाता है,उसी तरह विधाता ने सृष्टि का निर्माण करते हुए केन्द्र में स्त्री को रखा। इससे यह सृष्टि रूपी रथ आगे बढ़ने लगा। इस रथ के २ पहिए बने-स्त्री तथा पुरुष। रथ चलता रहा,सृष्टि फली-फूली एवं दोनों का विकास होता रहा।
आज हम २१वीं सदी में आ पहुंचे हैं। पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर स्त्री काम करने लगी है। यहां तक कि कई क्षेत्र में वह उससे आगे बढ़ चुकी है। आए दिन नई को कसौटियों का सामना कर वह आगे बढ़ रही है,मानो संघर्ष ही उसकी किस्मत है।
सती सीता के युग से वह अपने-आपको सिद्ध करते आई है और आज भी करना पड़ रहा है। पुरुष प्रधान संस्कृति में आज भी स्त्रियों पर अत्याचार ढाए जाते हैं। आए-दिन महिलाओं के मानसिक तथा शारीरिक शोषण की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसकी चरम सीमा तो देखो,इतनी भयानक है कि छोटी बालिकाएं भी इससे दबी-कुचली जा रही हैं। स्थितियां इतनी बदतर होती जा रही है कि,कई कली खिलने से पहले ही अपने आँगन में बेमालूम दफन हो रही है। सही तो कहते हैं गजलकार दुष्यंत ‘कैसे-कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
हैरानी की बात यह है कि जो सभ्यता-संस्कृति सारे संसार में सर्वश्रेष्ठ है,उसी का अध:पतन हमें देखना पड़ रहा है। जब तक हर बच्चे से बूढ़े तक सबकी नजर में स्त्री के लिए आदर तथा सम्मान उत्पन्न नहीं होता,तब तक महिला दिवस,बालिका दिवस,मातृ दिवस जैसे दिवस पर समारोह करना व्यर्थ होगा। बस,हम सबको उसकी शुरुआत अपने घर से करनी होगी…।

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