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साक्षात्कार ‘मैं’ का मेरे से…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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◾मैं कौन हूँ ?
-श्री हरि का एक अंश।
◾कहाँ हूँ ?
-श्री हरि की शरण में।
◾क्यों हूँ ?
-श्री हरि की अनुकम्पा पाने।
◾किसलिए हूँ ?
-पुनः श्री हरि में विलय होने।
◾किसके लिए हूँ ?
-श्री हरि के लिए।
◾अभिन्न हो तो श्री हरि अपना अंश अलग क्यूँ किए ?
-यह देखने की उनके अंश मात्र में कितनी शक्ति है।
◾हरि के अंश हैं सभी तो कुछ को सुख, कुछ को दु:ख क्यों मिलता है ?
-उनके अंश उनके बनाए नीति- नियमों में चलकर उन्हें कितना याद रखते हैं, या स्वयं को ही सम्पूर्ण हरि समझने लगते हैं। यह परखने को ही दु:ख-सुख हरि ने बनाया है, सभी को एक बराबर दु:ख-सुख मिलता है। प्रकार और अंश की सहन क्षमता के कारण दु:ख-सुख कम अधिक लगता है।
◾क्या धरती का प्रत्येक जीव उनका अंश है ?
-नहीं, कुछ नकारात्मक शक्ति के अंश हैं।
◾नकारात्मकता शक्ति को श्री हरि समूल समाप्त क्यों नहीं करते ?
-श्री हरि को कौतूहल न रहेगा, एकरसता, एकरूपता आ जाएगी,
और नकारात्मक शक्ति के अंशों से युद्धरत रहने के लिए ही अपना अंश भेजा है। जो नकारात्मक शक्ति के प्रभाव में आ जाते हैं, उन अंशों को तब तक धरती में भेजते रहते हैं, जब तक वे उन पर विजय न पा ले।
◾स्वर्ग-नर्क क्या है ?
-श्री हरि की प्रताड़ना और पुरस्कार।
◾आत्मा और देह भिन्न है या एक ?
-आत्मा ही श्री हरि का अंश है जिसको रहने के लिए मिट्टी का खोल बनाया है, जिसे देह कहते हैं।
◾तो क्या करना है तुम्हें ?
नकारात्मक शक्ति से युद्ध, धरती के नियमों और माया में रहते हुए हरि स्मरण।
◾क्या नकारात्मक शक्ति की शक्ति श्री हरि के बराबर है ?
-बराबर नहीं, लेकिन आधी तो है ही।
◾कहाँ रहते हैं श्री हरि ?
-मैं अंश हूँ और इस धरती और ऐसी ऐसी कितनी ही धरती पर असंख्य प्राणी रहते हैं, जो श्री हरि के अंश मात्र हैं, तो हरि कितने विराट हैं अनुमान नहीं कर सकते। सकल ब्रम्हांड में सर्वस्त्र हैं। यह धरती समझ लो उनका एक रोम है, इसलिए समझो सर्वव्यापी हैं।
◾तो उन्हें बैठने, खड़े होने, चलने को एक धरती-एक गगन होगा, जो इस ब्रम्हांड से अरबों गुणा बढा होगा ?
-ऐसा ही है मानवों का ब्रम्हांड, उनका निवास और उनका गगन और ब्रम्हांड और है, जिसकी कल्पना करना भी इस अंश के बस की बात नहीं।

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।