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सामाजिक सरोकारों की प्रखरता बनी रही है आज तक की पत्रकारिता में

वार्ता…

दिल्ली।

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव ही साहित्यिक चेतना के साथ हुआ था और ‘उदन्त मार्तण्ड’ से लेकर आज तक की पत्रकारिता में भाषा की आत्मा, संवेदना की तीव्रता और सामाजिक सरोकारों की प्रखरता बनी रही है।
भारत की ऐतिहासिक सांस्कृतिक चेतना की प्रेरणास्त्रोत, मराठा स्वराज्य की संस्थापिका और छत्रपति शिवाजी महाराज की मातृशक्ति राजमाता जीजाबाई की ३५२वीं पुण्यतिथि के पावन अवसर पर ‘हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता:विविध आयाम’ विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संवाद में यह विचार मुख्य वक्ता के रूप में सुप्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ‘मधुराक्षर’ के संस्थापक-संपादक और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में सह-आचार्य डॉ. बृजेन्द्र अग्निहोत्री ने अपने सघन और विद्वतापूर्ण वक्तव्य में हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता की ऐतिहासिक विकास-यात्रा को रेखांकित करते हुए व्यक्त किए। ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ के संयुक्त तत्वावधान में मनाए जा रहे ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता वर्ष–२०२५’ के अंतर्गत यह आयोजन न केवल हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारिता को समर्पित रहा, बल्कि इसने मातृत्व, नारीशक्ति, स्वराज्य, आत्मगौरव और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिक विमर्श से जोड़ने का अभिनव प्रयास भी किया। डॉ. अग्निहोत्री ने वर्तमान डिजिटल युग में भाषा के बदलते स्वरूपों, ऑनलाइन माध्यमों में साहित्य की उपस्थिति और व्यावसायिकता के बढ़ते दबावों के बीच साहित्यिक गुणवत्ता की रक्षा करने के उपायों पर भी गहनता से प्रकाश डाला।
इस अंतरराष्ट्रीय संवाद में हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों पर गहन चिंतन किया गया, जिसमें राजमाता जीजाबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेते हुए यह भी प्रतिपादित किया गया कि किस प्रकार स्त्री-चेतना, राष्ट्र निर्माण और आत्मबल के मूल्य साहित्यिक लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से नई पीढ़ियों तक प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित किए जा सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन संपादक डॉ. शैलेश शुक्ला द्वारा अत्यंत गहन और प्रभावशाली शैली में किया गया। उन्होंने हिंदी की पत्रकारिता में साहित्यिक गहराई, भाषिक गरिमा और विचारशील विमर्श की प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए यह रेखांकित किया कि साहित्यिक पत्रकारिता न केवल समाज के सौंदर्यबोध को जाग्रत करती है, बल्कि यह विचारशील नागरिकता की आधारशिला भी रखती है।
आयोजन में मुख्य संयोजक के रूप में श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला (संस्थापक-निदेशक, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन) की केंद्रीय भूमिका रही, साथ ही राष्ट्रीय संयोजक डॉ. कल्पना लालजी, प्रशांत चौबे, डॉ. सोमदत्त काशीनाथ, डॉ. हृदय नारायण तिवारी, प्रो. रतन कुमारी वर्मा और और शालिनी गर्ग आदि सह-संयोजकों ने देश-विदेश से जुड़े सहभागियों के साथ संवाद को प्रभावी बनाया। मार्गदर्शक के रूप में त्रिपुरा केंद्रीय विवि के अधिष्ठाता प्रो. विनोद कुमार मिश्रा की विद्वत्ता ने संवाद को वैचारिक स्थिरता प्रदान की।

कार्यक्रम में कई संपादक, हिंदी साहित्य के आचार्यगण, शोधार्थी एवं पत्रकार गण सम्मिलित हुए।