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सावन आयो रे…

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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मनभावन सावन आयो रे,
मनभावन सावन आयो रे
जा बैठे परदेश पिया, अब
चैन कहां से आयो रे।

जी चाहे बन जाऊँ बदरिया,
जा बरसूं मैं उनकी अटरिया
छम छमा छम ऐसे बरसूं,
शीतल कर दूँ मन की गगरिया
कब तक ऐसे राह निहारुं,
सूनी रह गई गली डगरिया।

घिर-घिर आये कारी बदरिया,
पवन पुरबइया,मारे लहरिया
सखियाँ आज मगन में झूले,
गाये खुशी से तीज कजरिया
जल दर्पण में देखूँ उन्हें मैं,
बसी नहीं ,दिल की नगरिया।

विरहा की मारी, लिखने बैठी,
ले के बैठी पेन और कापियाँ
क्या-क्या छोरुँ, क्या मैं लिखूं ?
लिखने को है ढेर-सी बतियाँ
दिन को पलभर चैन ना आये,
रात को करुँ, मैं चाँद से बतिया।

मन भावन सावन आयो रे,
मन भावन सावन आयो रे।
जा बैठे परदेश पिया,अब
चैन कहां से आयो रे॥

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