बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:१६/१४…
सावन की रुत आई देखो,
नव उमंग उर आई है।
सबके उर आनंद हिलोरें,
खुशियों से हरषाई है।
देख मही पर फसलों की अब,
सजती सुन्दर क्यारी है।
झरने निर्झर कल-कल बहते,
शोभा कितनी न्यारी है॥
हरीतिमा चहुँ ओर सजी है,
मौसम ली अँगड़ाई है।
सावन की रुत आई देखो…
आसमान पर काला-काला,
दृश्य मनोरम है प्यारा।
आशाओं के नेह बरसते,
गुंजित होता जग सारा॥
देख प्रकृति के इस आँगन में,
नेह सुधा सरसाई है।
सावन की रुत आई देखो…
पंछी करते कलरव नभ में,
पिय संदेशा लाते हैं।
इठलाती बलखाती देखो,
मधुर रागिनी गाते हैं॥
मंद पवन के शीतल झोंके,
बह आई पुरवाई है।
सावन की रुत आई देखो…॥