भोपाल (मप्र)।
साहित्यकार अपनी कलम से कुआं खोदें, खाई नहीं। कलम का काम समाज को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। साहित्यकार को बर्तनों की तरह स्वयं को मांजना जरूरी है। मांजने से तात्पर्य स्वयं को समय के साथ रोज विकसित करना।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेंद्र दीपक ने लघुकथा शोध केंद्र समिति (भोपाल) द्वारा हिंदी भवन में आयोजित अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए यह बात कही। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. प्रज्ञेश अग्रवाल (निदेशक-उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान, भोपाल) ने कहा कि शिक्षा हमें रोजगार देती है परंतु साहित्य हमें संस्कार देता है। साहित्य और शिक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
आयोजन के प्रथम सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार सुभाष नीरव ने कहा कि समिति साहित्य को शिक्षा से जोड़ने, साहित्य में शोध और रोजगार परक बनाने के लिए जमीनी और महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। इसके लिए बधाई की पात्र है। एक और महत्वपूर्ण वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.मितलेश अवस्थी ने ‘साहित्य और शिक्षा के अंतर्संबंध’ विषय पर समाज के विकास में दोनों की भूमिका और उपादेयता पर अपनी बात रखी। अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन किया। केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने स्वागत उद्बोधन दिया।
सत्र का आरंभ गोविंद शर्मा एवं राजश्री शर्मा द्वारा पंडित माधवराव सप्रे लिखित ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ के वाचन से हुआ। इस सत्र में केंद्र के राष्ट्रीय संयोजक विजय जोशी ने केंद्र के विस्तार पर अपनी बात रखी। द्वितीय सत्र में महेश दर्पण, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे और सुश्री दर्शना जैन आदि को लघुकथा कृति सम्मान से सम्मानित किया गया।
समारोह में सम्पादक संदीप ‘सृजन’ (उज्जैन) को संवाद भारती सम्मान और साहित्यिक सांस्कृतिक पत्रकारिता सम्मान से मुकेश तिवारी (इंदौर) को सम्मानित किया गया। अन्य रचनाकारों को उनकी लघुकथा कृतियों हेतु सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में देशभर से आए लघुकथा लेखकों की १२ पुस्तकों का विमोचन मंचस्थ अतिथियों ने किया।
कार्यक्रम का संचालन केंद्र के सचिव घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ एवं मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने किया। कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ने आभार प्रकट किया।