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सा…ड़ी…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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मैं शाम को ऑफिस से घर लौटा, तो देखा कि मेरी पत्नी जो रोज मेरी ऑफिस से आने की प्रतीक्षा करती थी,आज नहीं दिखी। दरवाजा भी खुला हुआ था,मैंने सोचा कि कहीं आस-पास गई होगी। मैंने अपने ऑफिस के कपड़े बदलने के लिए जैसे ही कमरे के भीतर प्रवेश किया तो देखा कि मेरी पत्नी अलमारी के दोनों दरवाजे खोलकर साड़ियों से खचा-खच भरी अलमारी को एक-टक निहार रही थी। वह साड़ियों को निहारने में इतना मगन थी,कि उसे मेरे घर के अंदर प्रवेश करने की आहट भी सुनाई नहीं पड़ी।
उसे उस हालत में देखते के साथ ही मुझे याद आया कि आज रात शादी में अपने रिश्तेदार के घर जाना है,पर मेरी पत्नी का साड़ियों से भरी हुई अलमारी के भीतर एक-टक ताकना मुझे समझ में नहीं आया था,लेकिन किसे पता था कि बम अब फटने वाला है। मैंने जैसे ही उसे आवाज दी,वह मेरी ओर घूमी। मैंने देखा कि उसकी दोनों आखों से अश्रु धाराएँ प्रवाहित हो रही थी,यह बात मेरे लिए बिल्कुल नयी थी। उसके दुःख का कारण जब मैंने जानने की कोशिश की तब वह जोर-जोर से रोने लगी। मैंने समझा कि शायद उसके परिवार में किसी निकट सम्बन्धी की मौत हो गई है,इसीलिए रो रही है। मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि रो मत आखिर में सभी को जाना पड़ता है,कोई भी इस दुनिया में रहने के लिए नहीं आता है,…और दार्शनिक अंदाज़ में बोला-जो आता है उसको जाना पड़ता है। कोई आगे जाता है और कोई पीछे जाता,पर जाना सभी को पड़ता है..।
वह रोते हुए बोली-नहीं जी,मैं किसी की मौत के लिए नहीं रो रही हूँ। मैंने उसे धीरज बंधाते हुए पूछा,तो फिर तुम्हारे रोने का क्या कारण है ?
वह बोली आपको पता है न कि आज हमें अपने रिश्तेदार के यहाँ पर शादी में जाना है। मैंने कहा,हाँ मुझे पता है,पर उससे रोने का क्या सम्बन्ध है। तब वह फफकते-फफकते हुए बोली, मेरे पास पहनने के लिए कोई साड़ी नहीं है। यह बात सुनकर मेरा सर चकराने लगा,मन ही मन सोचा,हे भगवान! जिसके पास एक अलमारी ठसा-ठस साड़ी भरी हुई है,वह कह रही है कि उसके पास पहनने के लिए साड़ी नहीं है…।
पहले-पहले एक अलमारी में एक तरफ मेरे कपड़े रहते थे तो दूसरी तरफ मेरी पत्नी के, पर धीरे-धीरे उसके कपड़े के लिए जगह कम पड़ने लगी। नतीजन मेरे कपड़े रखने की जगह सिकुड़ती गई,और अंततः अलमारी में कपड़े रखने के अधिकार से मैं बेदखल हो गया। अब उस अलमारी में केवल उसका एकाधिकार रह गया था। अब मैं मेरे गिने-चुने कपड़े दरवाज़े के पीछे टांग देता हूँ। बचपन से ही मेरा काम २ शर्ट और २ पेंट में हो जाता था,शादी के बाद कुछ अतिरिक्त कपड़े जो कि मेरे पत्नी के पसंद के थे,बना लिए थे,जो बड़ी शान के साथ दरवाजे के पल्ले के पीछे टंगे हुए थे।
मैंने एक सुंदर-सी साड़ी अलमारी से निकालकर अपनी पत्नी को दी। उसने उसे हाथ में पकड़ा,उसकी ओर देखा,फिर बिस्तर पर पटक दी। बोली,-यह साड़ी तो मैंने एक साल पहले मेरी बहन की सगाई में पहनी थी। मैंने एक दूसरी ख़ूबसूरत-सी साड़ी अलमारी से निकालकर दी,उसे भी उसने एक तरफ रख दिया। बोली,-यह तो मैंने अपने सहेली के बेटे की सालगिरह में पहनी थी। फिर मैंने एक और साड़ी निकाल कर सामने रख दी। मेरी पत्नी ने उसे भी नकार दिया। पता चला यह साड़ी भी २ साल पहले कहीं किसी पार्टी में पहनकर गई थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इनको इतनी चीज़ याद कैसे रहती है। मैंने उससे पूछा,आखिर में बात क्या है। तुम यह सब ख़ूबसूरत साड़ी जो तुम पर खूब जंचती है,को पहनने से इंकार कर रही हो। तब उसका जवाब सुनकर मेरा दिमाग ख़राब हो गया। उसने कहा कि अगर मैं कोई साड़ी दुबारा रिपीट करती हूँ,तो मेरी सहेलियां या रिश्तेदार सोचेंगे कि इसके पास पहनने के लिए कुछ नहीं है। मैंने कहा कि भागवान,तुमने जो साड़ी १ या २ साल पहले पहनी थी,उसे कोई कैसे याद रखेगा ? तब उसने बताया कि आपको हम महिलाओं की बात पता नहीं,कौन कब,कौन-सी साड़ी पहनी थी। हमें सब याद रहता है,हम कभी भी नहीं भूलते हैं। अगर गलती से भी कोई अगर दुबारा साड़ी रिपीट कर ली तो उसके ऊपर सभी हँसते हैं। मैंने बोला तुमने या पड़ोसन ने कल क्या साड़ी पहनी थी,यह मुझे याद नहीं है,फिर दूसरा कैसे याद रख सकता है। हमें देखो,एक ही शर्ट-पेंट को कई सालों-साल रगड़ते रहते हैं,मजाल है किसी का कभी कुछ बोले…। उसी शर्ट-पेंट को हम ऑफिस में पहनकर जाते हैं और उसी को पार्टी में भी पहनकर कर जाते हैं। साड़ी को एक ही बार पहनोगी तो हर शादी-ब्याह में मैं नई-नई साड़ी कहाँ से ला कर दूँ। आखिर में बहुत माथा पच्ची करने के बाद पत्नी ने उस भीड़ से एक साड़ी निकाली,जो बेहद ख़ूबसूरत थी। उसने बताया कि आपको याद है न पिछले साल हम पुरी गए थे। मैंने बोला हाँ याद तो है,पर उसे इस साड़ी से क्या लेना-देना! वह बोली लेना-देना है क्यों नहीं! आपको याद होगा कि पुरी के समंदर के पानी में मेरा मोबाइल गिर कर ख़राब हो गया था। मैं बोला,याद क्यों नहीं रहेगा तुम्हें नया मोबाइल खरीदने के लिए मेरे १२ हज़ार रूपए खर्च जो करने पड़े थे। मुझे अभी-भी यह रहस्य समझ नहीं आ रहा था कि इन सब में यह साड़ी कहाँ पर फिट होती है। उसने रहस्य को भेदते हुए कहा,यह साड़ी मैंने पुरी में पहनी थी,जो किसी ने नहीं देखी है, क्योंकि मोबाइल ख़राब हो जाने की वजह से मैं अपना सेल्फी फेसबुक में अपलोड नहीं कर पाई थी।
मैं भी खुश,मेरी पत्नी भी खुश,पर दोनों की ख़ुशी की वजह अलग-अलग थी…..

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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