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सिद्धान्तवादी ‘भारत रत्न’ गुलजारी लाल नन्दा

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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योजना, सिंचाई एवं उर्जा मन्त्रालय के अलावा गृहमंत्री, श्रम एवं रोजगार मन्त्री, फिर रेल मंत्री के अलावा २ बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे सिद्धान्तवादी, मितव्ययी ‘भारत रत्न’ गुलजारी लाल नन्दा को कुरुक्षेत्र को भारत के पर्यटन स्थल पर स्थापित करवाने के लिए हमेशा श्रद्धापूर्वक याद किया जाएगा। इनके अथक प्रयास से देश में एक ऐसा सशक्त श्रम कानून आ पाया, जिसको आज तक बदलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। ये सिद्धांतों के पक्के ऐसे राजनेता थे जिन्होंने खुलकर इन्दिरा गांधी के आपातकाल लगाने के फैसले से न केवल नाराजगी जताई, बल्कि उस आपातकाल के बाद सभी नामी-गिरामी हस्तियों के बार-बार मनाने के बावजूद कभी चुनाव नहीं लड़ा।
नन्दा जी जब गृहमन्त्री थे, तब उन्होंने अपने ही राजनीतिक दल के एक बड़े नेता को भ्रष्टाचार प्रकरण में दोषी पाया तो बिना विलम्ब उन्होंने उसे गिरफ्तार करवा जेल भेज दिया। हाँलाकि, इस घटना से उनके दल के अनेक सदस्य नाराज हो गए लेकिन ये अपने निर्णय पर अटल रहे फलस्वरूप भ्रष्टाचार में संलिप्त नेताओं ने उन्हें गृह मंत्रालय से हटवा दिया।
ऐसे ही दृढ़ संकल्प की दूसरी घटना, जिसके अनुसार एक पत्रकार यह देख आश्चर्यचकित रह गया कि दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी स्थित एक मकान के सामने ९४ वर्ष के वरिष्ठ अपने बहुत ही अल्प सामान के साथ उस मकान से निकाले जाने पर उस मकान के बाहर मकान मालिक से किराया चुकाने के लिए थोड़ा और वक्त माँग रहा है। कुछ ना नुकर के बाद मकान मालिक राजी तो हो जाता है, लेकिन उसकी अनिच्छा स्पष्ट झलक रही थी।
यह सब देख-सुन पत्रकार ने उन सभी की जो तस्वीर ले ली थी, के साथ यह समाचार अपने समाचार-पत्र में प्रकाशन हेतु मालिक को जब प्रस्तुत किया तो मालिक ने उस पत्रकार से पूछा,-यह बूढ़ा कौन है ? तो उसने अपनी अनभिज्ञता जताई। अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं।” खबर में सम्पादक ने एक टिप्पणी भी लिखी कि आजकल के राजनीतिज्ञ खूब पैसा कमा रहे हैं, जबकि एक व्यक्ति जो २ बार प्रधानमंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं। समाचार का असर ही था कि अगले दिन ही वर्तमान प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और विशिष्ट अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने विशिष्ट अधिकारियों के वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार गुलजारीलाल नंदा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों पर झुक गया।
अधिकारियों ने नंदा जी से जब सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं स्वीकार करने का अनुरोध किया, तब नन्दा जी ने बड़ी ही विनम्रता से उन्हें “बिना श्रम किए जनता से टैक्स में मिले पैसा लेना महापाप है”, बता निरूत्तर कर दिया, साथ ही इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।
अंतिम श्वाँस तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे गांधीवादी एवं सिद्धांत के प्रति संपूर्ण रूप से प्रतिबद्ध और ईमानदार स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। ऐसे निर्लोभी, वास्तविक फकीर और संत महापुरुष को वर्ष १९९७ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व एच.डी. देवगौड़ा के सद्प्रयासों से ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया !
आशा करते हैं कि वर्तमानकाल के राजनेताओं में से भी कोई तो ऐसा उभरेगा, जो श्री नन्दा जैसे मन-वचन और कर्म से न केवल पवित्र, बल्कि अपने किए गए वादों के प्रति ईमानदार, प्रतिबद्धता एवं सत्यनिष्ठा के साथ अपने सिद्धांतों के प्रति अडिग खड़ा दिखाई देगा।

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