हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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धरो फिर से तुम मोहिनी रूप हरि,
मांस-मदिरा भक्षी असुर वंचित हो
सरहदी माटी का पावन अमृत कहीं,
अधम-असुर खेमें में न संचित हो।
उससे पहले कलश छीन कर,
सिर-धड़ उसका जुदा करो
राहु-केतु से दो हिस्से बन जाए,
ऐसा कुछ तुम खुदा करो।
पैशाचिक नर्तन न हो धरा पर,
गीता का यह तेरा ज्ञान रहा
मैं आऊंगा संघारने दुष्टों को,
यह भी तेरा ही वचन कहा।
सीमा-अभिमन्यु फिर चक्रव्यूह में,
घेरा, पाक,चीन और नेपाल ने
कोरोना-सुषर्मा ने नाहक भटकाया,
हिन्द-अर्जुन को अभी ही हाल में।
अब तो सीख लो, महाभारत से जनता- जनार्दन,
न उलझाओ अर्जुन को,इनकी चाल में
ये तो दाल ही सारी काली है नाथ,
न के कुछ काला-काला पड़ा है दाल में।
व्यूह भेद का करो कुछ साहेब,
अभिमन्यु को हर हाल बचाना है
सीख गया अब ज्ञान व्यूह का सब,
दुनिया को आज यह बताना है।
वरना फिर होगी बदनाम सुभद्राएं,
सता, स्वार्थ के निद्रित चक्कर में
नहीं तो किसमें हिम्मत आज ऐसी,
कि कोई खड़ सके अभिमन्यु की टक्कर में ?
बन जाए न जय चंद आज कोई,
इस विपदा के कलंकित काल में
उनके, विभीषण का दिल से स्वागत हो,
सुषेण की, औषध भर लो थाल में।
आटे में नमक से एक हो जाओ,
न पड़ो आज, खेमों के बवाल में।
राष्ट्र धर्म को याद करो सब,
कमल दल सा, खिलो तुम एक होकर,
राजनीतिक जल सींचो कमल नाल में॥