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स्तुति चारों धाम की

पी.यादव ‘ओज’
झारसुगुड़ा (ओडिशा)
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‘धरती के कण-कण में पावन तेरा नाम,
प्रभु तेरे चरणों पे, बसे हैं चारों धाम।
ईश्वर, खुदा, वाहेगुरु, सब तेरा ही नाम,
कोई कहे रहीम तुझे, कोई कहे प्रभु राम।’
परमात्मा कण-कण में समाया हुआ है।
परमात्मा को ढूंढने के लिए अन्यत्र कहीं और जाने की आवश्यकता ही नहीं है।
आत्मा में बसा दिव्य प्रकाश, जो निरंतर अपनी दिव्यता से मानवीय संचेतना को एक नई दिशा,
एक नए लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है,
वह स्वयं परमात्मा का ही अंश है।
ईश्वर कई नाम और कई रूपों में हमारे आसपास विद्यमान है, परंतु हमारी दृष्टि परमात्मा के अंश को देख नहीं पाती है, क्योंकि मनुष्य उस दिव्य अंश से यथोचित जुड़ ही नहीं पाता है। परमात्मा को ईश्वर कहो, अल्लाह कहो या वाहेगुरु कहो, कृष्ण कहो या राम। वे हर नाम-रूप में कण-कण में समाए हुए हैं-
‘सब धर्मों-ग्रंथों की सीख एक-सी,
सबमें समझ, ज्ञान एक समान।
प्रेम, अहिंसा से नर-जीवन सुधरे,
सेवा से हो नित्य आत्म-कल्याण।’
संसार में सभी धर्म के अपने धर्म-ग्रंथ हैं और सभी ग्रंथों का संदेश एक-सा ही है।
सभी ग्रंथों ने प्रेम, शांति, सेवा को जीवन का महामंत्र माना है।
ग्रंथों का मानना है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, शांति और सेवा जैसे महान मूल्यों को प्राप्त करके ही मनुष्य की आत्मा का नित्य कल्याण होता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता जाता है-
‘स्तुति धामों की मैं क्या करूँ,
कैसे करूँ ईश्वर का गुणगान।
पुरी, द्वारिका, बद्री, रामेश्वरम।
सबकी लीला है अपरम्पार।।’
ऐतिहासिक और भौगोलिक स्थिति के अनुसार सभी धामों की अलग-अलग विशेषताएं हो सकती है,
पर पौराणिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से धामों की पवित्रता, ईश्वरीय दिव्यता एक जैसी ही है।

सभी धामों में ईश्वर अलग-अलग नामों व रूपों से विराजमान है।ऐसा माना जाता है, कि जीवनकाल में एक बार इन धामों की यात्रा, दुर्लभ दर्शन कर लिए जाएँ तो मानव-जीवन सफल हो जाता है और मोक्ष प्राप्ति का रास्ता खुल जाता है।